अमृतलाल नागर 17 अगस्त 1916 को आगरा (उ.प्र.) में जन्म। प्रारम्भिक लेखन और पत्रकारिता के ठीक बाद लगभग सात वर्षों तक उन्होंने मुम्बई के फिल्म-क्षेत्र में लेखन कार्य किया। वे दिसम्बर 1953 से मई 1956 तक आकाशवाणी, लखनऊ केन्द्र में ड्रामा-प्रोड्ïयूसर रहे। फिर साहित्यिक कार्यों में नौकरी को बाधा मानकर त्यागपत्र और आजीवन स्वतन्त्र रूप से लेखन कर्म। नागर जी ने सामाजिक-ऐतिहासिक उपन्यास, कहानियाँ, नाटक, रेडियो-नाटक, फिल्म-सिनेरियो, लेख, हास्य-व्यंग्य पैरोडी, यात्रा वर्णन, बच्चों की कहानियाँ आदि जो भी लिखा, सब पर अपनी प्रतिभा की अमिट छाप छोड़ी। 'भूख’, 'बूँद और समुद्र’, 'सुहाग के नूपुर’, 'शतरंज के मोहरे’, 'अमृत और विष’, 'मानस का हंस’, 'खंजन नयन’, 'नाच्यौ बहुत गोपाल’, 'करवट’, 'पीढिय़ाँ’ आदि उनकी बहुचर्चित कृतियाँ हैं। उनकी अनेक कृतियाँ देश तथा विदेश की भाषाओं में अनूदित हुई हैं। भारतीय वाङ्ïमय की स्मृद्धि में विशिष्टï योगदान हेतु वे साहित्य अकादेमी पुरस्कार, सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, भारतभारती पुरस्कार, डॉ. राजेन्द्रप्रसाद शिखर सम्मान एवं साहित्य अकादेमी महत्तर सदस्यता से विभूषित हुए। उन्होंने कुशल रंगप्रयोक्ता के रूप में भी अपनी पहचान बनायी तथा उत्तार भारत के रंग-आन्दोलन को गति प्रदान करने में अग्रणी भूमिका का निर्वाह किया। भारत सरकार द्वारा 'पद्ïम भूषण’ से अलंकृत नागर जी का देहान्त शिवरात्रि, 23 फरवरी 1990 को लखनऊ में हुआ।