"प्रियदर्शी ठाकुर 'खय़ाल’ जन्म सन् 1946, मोतिहारी; मूल निवासी सिंहवाड़ा (बिहार); पटना विविद्यालय से बी.ए. (इतिहास ऑनर्स); दिल्ली विश्वविद्यालय से एम.ए (इतिहास); सन् 1967 से ‘70 तक दिल्ली विश्वविद्यालय के भगत सिंह कॉलेज में इतिहास का अध्यापन; सन् 1970 से 2006 तक भारतीय प्रशासनिक सेवा में; 2008 से आगे पूर्णकालिक लेखन एवं अनुवाद कार्य। 'खयाल की कविताओं, गज़लों और नज़्मों के आठ संकलन प्रकाशित हैं, और वे उर्दू शायरी के जाने-माने वेब-साइट रेख्ता.ऑर्ग में सम्मिलित शायर हैं। खयाल की गज़लें जगजीत सिंह, अहमद हुसैन-मोहम्मद हुसैन, डॉ. सुमन यादव आदि ने गायी हैं। अनुवाद कार्यों में नवीं शताब्दी चीन के विख्यात कवि बाइ जूई की दो सौ कविताओं के उनके हिंदी अनुवाद के संकलन 'तुम! हाँ, बिलकुल तुम (भारतीय ज्ञानपीठ) और 'बाँस की टहनियाँ (साहित्य अकादमी) और तुर्की नोबेल-विजेता ओरहान पामुक का उपन्यास 'स्नो का हिंदी अनुवाद (पेंगुइन इंडिया) विशेष उल्लेखनीय हैं। प्रियदर्शी ठाकुर 'खयाल का पहला उपन्यास 'रानी रूपमती की आत्मकथा सन् 2020 में राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है। श्रीलंका के प्राचीन बौद्ध पुराण 'महावंश पर आधारित इस दूसरे उपन्यास में पर-काया प्रवेश द्वारा कथा बाँचने की शैली को बहुमुखी आयाम देने का अभिनव प्रयोग किया गया है। "