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जन्म : 3 अगस्त 1983. झारखण्ड की पश्चिमी सिंहभूम जिले में सारंडा जंगल से सटे झारखण्ड व ओडिसा की सीमा पर स्थित मनोहरपुर प्रखंड के खुदपोस गाँव में, काव्य संग्रह 2016 में पहला काव्य-संग्रह 'अंगोर' हिंदी-अंग्रेजी में आदिवानी कोलकाता से प्रकाशित. 'अंगोर' का जर्मन संस्करण हिंदी-जर्मन में 'ग्लूट' नाम से द्रोपदी वेरलाग, जर्मनी से प्रकाशित. रचनाएं : बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की हिंदी विभाग से प्रकाशित पत्रिका 'परिचय' सहित देश की प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं में अनेक कवितायेँ प्रकाशित जिनमें 'पहल', 'नया ज्ञानोदय', 'युद्धरत आम आदमी', 'शुक्रवार', 'वागर्थ' शामिल हैं. विभिन्न कावियों के कविता-संग्रहों में भीं इनकी कवितायेँ शामिल, इनमें 'शतदल', रेतपथ, 'समंदर में सूरज', 'कलम को तीर बनने दो', 'माटी', आदि स्मरणीय हैं. उपलब्धियां : 2014 में आदिवासियों के स्थानीय संघर्ष पर उनकी एक रिपोर्ट पर बतौर आदिवासी महिला पत्रकार उन्हें इंडिजिनस वॉयस ऑफ़ एशिया का रिकगनिशन अवार्ड, एशिया इंडिजिनस पीपुल्स पैक्ट, थाईलैंड की ओर से दिया गया. 2014 में विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर झारखण्ड इंडिजिनस पीपुल्स फोरम की ओर से कविताओं के लिए सम्मानित. 2014 में ही उन्हें बतौर स्वतंत्र पत्रकार प्रतिष्ठित यूएनडीपी फेलोशिप प्राप्त हुई. 2014 में छोटानागपुर सांस्कृतिक संघ की ओर युवा कवि के रूप में ' प्रेरणा सम्मान' से सम्मानित. 2015 में उन्हें रविशंकर उपाध्याय स्मृति युवा कविता-पुरस्कार प्राप्त हुआ. 2017 में प्रभात खबर अख़बार द्वारा अपराजिता सम्मान से सम्मानित. सम्प्रति: वर्तमान में वे गाँव में सामाजिक कार्य के साथ कविता सृजन कर रही हैं. 

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