हिंदी के विराट आकाश में जैनेद्र कुमार का रचनात्मक अलोक तेजपुंज के रूप में प्रतिस्थीत हो चुका है उन्होंने प्रेमचंद के समय में ही समानांतर कथा-परम्परा का प्रखर प्रस्थान निर्मित किया. अभी व्यक्ति की अनेक इकाइयों के प्रचलित स्वरुप में मौलिक परिवर्तन करते हुए जैनेन्द्र कुमार ने कथ्य विचार संवेदना व संरचना के नवीन पथ प्रशस्त किये परतंत्रता और जड़ता के अनेक सामायिक व सनातन प्रशनो से संवाद करते हुए उन्होंने उपन्यास, कहानी, निबंध, संस्मरण, ललित निबंध और चिन्तनपरक लेखन में युगांतर किया! वस्तुतः कुमार स्वयं एक कालजयी शब्द साधना के प्रतीक बन चुके है. एक गूढ़ अर्थ में उनका साहित्य व्यक्ति व समाज की नयी नैतिकता का उपनिषद है.