बांग्ला के अमर कथा शिल्पी श्री शरतचंद्र चट्टोपाध्याय का जन्म पश्चिम बंगाल के हुगली जनपद के अंतर्गत देवानन्दपुर नामक गाँव में 15 सितंबर 1876 को हुआ था! माँ श्रीमती भुवनेश्वरी देवी और पिता भी मतिलाल चट्टोपाध्याय की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने की वजह से शरत की पढाई लिखाई अपने ननिहाल भागलपुर में हुई! आर्थिक तंगी के कारण ही शरत को एफ.ए की पढाई अधबीच छोड़नी पड़ी! माँ के मरणोपरांत पिता से तकरार हुई और शरत ने कुछ वर्षो तक संन्यासी बनकर विशुद्ध यायावरी की ! यही नहीं समय था जब वे 'देवदास' लिख रहे थे ! हुगली में छूट चुकी बचपन की सखा राजलक्ष्मी ने पार्वती और भागलपुर की कालिदासी व चतुर्भुज स्थान (मुजफ्फरपुर) की पुनती ने मिलकर चंद्रमुखी का चरित्र साकार किया! 1901 में लिखे जा चुके 'देवदास' को शरत अपनी कमजोर रचना मानकर छपवाने से गुरेज करते रहे! अंतत मित्रों के अतिशय दवाब पर 1917 में 'देवदास' का प्रकाशन हो पाया. प्रकाशनोपरांत 'देवदास' को पाठकों ने हाथोंहाथ लिया! आज लगभग एक सदी बाद भी लोग 'देवदास' को पढ़ते है, सराहते हैं !