भोपाल में जन्म। विज्ञान में शिक्षा। कला में दीक्षा। अमूर्त कलाकार कहे जाते हैं। मगर खुद मानते हैं कि रंग और रेखाओं में अपने अमूर्त को मूर्त करते हैं। जो क्या रहता है, शब्दों में मूर्त होता है। `सफेद साखी’ (पीयूष दईया के साथ चित्र-कला चिन्तन) और `को देखता रहा’ (विभिन्न विषयों पर लिखे लेखों का संकलन) किताबों छप चुकी है। `अकथ’ (अशोक वाजपेयी पर केन्द्रित) का सम्पादन किया है। देश और विदेश में कला के सृजन और प्रदर्शन सामाजिक संस्थाओं से जुड़ाव आदि के बीच जब जब अवकाश मिलता है, कलम उठा लेते हैं।