Aage Jo Pichhe The

view cart
Availability : Stock
  • 0 customer review

Aage Jo Pichhe The

Number of Pages : 112
Published In : 2016
Available In : Hardbound
ISBN : 978-932635490-5
Author: Manish Pushkale

Overview

तमाम जीवों में से शायद मनुष्य में ही यह क्षमता है कि वह अपने से परे हो कर कभी-कभार इस सचराचर धरा और उसके बीच खुद को देख-परख सके। यह देखना परखना हर कला रूप अपनी तरह से, अपनी व्याकरण की तहत करता है। देख्या परखिया सिख्या। संस्कृत, संस्कार, इतिहास और स्मृति की एक भाँय-भाँय करते कई कमरोंवाली हवेली से बाहर बदलते जीवन की खुली सड़क तक की यह यात्रा अपने-अपने औज़ारों की घिसी हुई थैली उठाये हुए तमाम संगीतकार, नर्तक, चित्रकार, स्थपित, लेखक, कवि सभी करते रहते हैं। कभी झिझक और अचरज से, कभी भय विस्मय के साथ। सहृदय रसिकों की छोड़ दें तो हमारे समय में वह तटस्थ आँख अधिकतर रसिक जनों के मन में बन्द हो कर रह गयी है जो इन कलाकारों की रचनाओं से अचानक कभी पंक्ति से उठा कर स्वर या शब्द या रंग अथवा भँगिमा को

Price     Rs 200/-

Rates Are Subjected To Change Without Prior Information.

तमाम जीवों में से शायद मनुष्य में ही यह क्षमता है कि वह अपने से परे हो कर कभी-कभार इस सचराचर धरा और उसके बीच खुद को देख-परख सके। यह देखना परखना हर कला रूप अपनी तरह से, अपनी व्याकरण की तहत करता है। देख्या परखिया सिख्या। संस्कृत, संस्कार, इतिहास और स्मृति की एक भाँय-भाँय करते कई कमरोंवाली हवेली से बाहर बदलते जीवन की खुली सड़क तक की यह यात्रा अपने-अपने औज़ारों की घिसी हुई थैली उठाये हुए तमाम संगीतकार, नर्तक, चित्रकार, स्थपित, लेखक, कवि सभी करते रहते हैं। कभी झिझक और अचरज से, कभी भय विस्मय के साथ। सहृदय रसिकों की छोड़ दें तो हमारे समय में वह तटस्थ आँख अधिकतर रसिक जनों के मन में बन्द हो कर रह गयी है जो इन कलाकारों की रचनाओं से अचानक कभी पंक्ति से उठा कर स्वर या शब्द या रंग अथवा भँगिमा को
Add a Review
Your Rating