Aathavan Sarg
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Aathavan Sarg
Number of Pages : 272
Published In : 2017
Available In : Hardbound
ISBN : 978-93-263-5425-7
Author: Surendra Verma
Overview
सुदूर अतीत में वर्तमान की रेखाएँ और वर्तमान में विगत की पुनरावृत्ति की दृष्टि से ‘आठवाँ सर्ग’ एक बहुचॢचत नाटक रहा है। कालिदास के महाकाव्य ‘कुमारसम्भव’ के विवादास्पद आठवें सर्ग के उद्दाम शृंगार के बहाने इस नाट्य-कृति में कला-क्षेत्र में श्लीलता-अश्लीलता और सेंसरशिप बनाम अभिव्यक्ति-स्वातन्त्र्य जैसे तीखे विषय लिये गये हैं। यहाँ कथ्य एक ओर ऐतिहासिक है, तो दूसरी ओर ऐसा प्रतीकात्मक अनुभव-खंड, जिसमें एक देशकाल-निरपेक्ष सार्वभौमिक सत्य अन्तनिहित है। इतिहास-बोध, कला-चेतना एवं रंग-कौशल की दृष्टि से ‘आठवाँ सर्ग’ समकालीन नाट्य-दृष्टि और रंगमंच की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है।
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सुदूर अतीत में वर्तमान की रेखाएँ और वर्तमान में विगत की पुनरावृत्ति की दृष्टि से ‘आठवाँ सर्ग’ एक बहुचॢचत नाटक रहा है। कालिदास के महाकाव्य ‘कुमारसम्भव’ के विवादास्पद आठवें सर्ग के उद्दाम शृंगार के बहाने इस नाट्य-कृति में कला-क्षेत्र में श्लीलता-अश्लीलता और सेंसरशिप बनाम अभिव्यक्ति-स्वातन्त्र्य जैसे तीखे विषय लिये गये हैं। यहाँ कथ्य एक ओर ऐतिहासिक है, तो दूसरी ओर ऐसा प्रतीकात्मक अनुभव-खंड, जिसमें एक देशकाल-निरपेक्ष सार्वभौमिक सत्य अन्तनिहित है। इतिहास-बोध, कला-चेतना एवं रंग-कौशल की दृष्टि से ‘आठवाँ सर्ग’ समकालीन नाट्य-दृष्टि और रंगमंच की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है।