Kavita Ki Samkaleen Sanskriti

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Kavita Ki Samkaleen Sanskriti

Number of Pages : 280
Published In : 2017
Available In : Hardbound
ISBN : 9789326355889
Author: Bharat Prasad

Overview

"कविता की समकालीन संस्कृति बीती शताब्दी के अन्तिम दशक में दर्जनाधिक कवियों ने अपनी पहचान न सि$र्फ कायम की बल्कि सदी की सरहद पर भोर की आहट दे रहे 21वीं सदी के युवा कवियों का मार्ग दर्शन भी किया। नरेश सक्सेना, ज्ञानेन्द्र पति, राजेश जोशी, मंगलेश डबराल, विजेन्द्र, अरुण कमल , ऋतुराज, चन्द्रकान्त देवताले, वेणु गोपाल, हरिश्चन्द पांडेय, मदन कश्यप, लीलाधर मंडलोई, कात्यायनी, रंजना जायसवाल, पवन करण, सुरेश सेन निशान्त, केशव तिवारी और सन्तोष चतुर्वेदी जैसे प्रगतिशील चेतना के गायकों ने नागार्जुन, धूमिल और कुमार विकल के बाद उत्पन्न गैप को भरने की महत्त्वपूर्ण कोशिश की। पिछले 50 वर्षों की हिन्दी कविता कोई मुक्तिबोध, नागार्जुन या धूमिल न दे पाने के बावजूद सृजन के उर्जस्वित नवउत्थान की उम्मीद जगाती है। राजेश जोशी के समानान्तर कवियों में नरेश सक्सेना एक ऐसे कवि हैं जिन्होंने अपनी सृजन यात्रा में तमाम धूप-छाँही उतार-चढ़ाव के बावजूद अपने आपको नयेपन की ताजगी के साथ जिलाए रखा। उबड़-खाबड़ मैदान की तरह सामने खड़ी है 21वीं सदी, जो वरिष्ïठतम, वरिष्ïठ, युवा और नव कवियों को एक साथ लेकर आगे बढ़ रही है। इसमें कुँवर नारायण और केदारनाथ सिंह जैसे तार सप्तकी हस्ताक्षर हैं, तो नरेश सक्सेना जैसे धूमिल के समकालीन व्यक्तित्व भी। "

Price     Rs 480/-

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"कविता की समकालीन संस्कृति बीती शताब्दी के अन्तिम दशक में दर्जनाधिक कवियों ने अपनी पहचान न सि$र्फ कायम की बल्कि सदी की सरहद पर भोर की आहट दे रहे 21वीं सदी के युवा कवियों का मार्ग दर्शन भी किया। नरेश सक्सेना, ज्ञानेन्द्र पति, राजेश जोशी, मंगलेश डबराल, विजेन्द्र, अरुण कमल , ऋतुराज, चन्द्रकान्त देवताले, वेणु गोपाल, हरिश्चन्द पांडेय, मदन कश्यप, लीलाधर मंडलोई, कात्यायनी, रंजना जायसवाल, पवन करण, सुरेश सेन निशान्त, केशव तिवारी और सन्तोष चतुर्वेदी जैसे प्रगतिशील चेतना के गायकों ने नागार्जुन, धूमिल और कुमार विकल के बाद उत्पन्न गैप को भरने की महत्त्वपूर्ण कोशिश की। पिछले 50 वर्षों की हिन्दी कविता कोई मुक्तिबोध, नागार्जुन या धूमिल न दे पाने के बावजूद सृजन के उर्जस्वित नवउत्थान की उम्मीद जगाती है। राजेश जोशी के समानान्तर कवियों में नरेश सक्सेना एक ऐसे कवि हैं जिन्होंने अपनी सृजन यात्रा में तमाम धूप-छाँही उतार-चढ़ाव के बावजूद अपने आपको नयेपन की ताजगी के साथ जिलाए रखा। उबड़-खाबड़ मैदान की तरह सामने खड़ी है 21वीं सदी, जो वरिष्ïठतम, वरिष्ïठ, युवा और नव कवियों को एक साथ लेकर आगे बढ़ रही है। इसमें कुँवर नारायण और केदारनाथ सिंह जैसे तार सप्तकी हस्ताक्षर हैं, तो नरेश सक्सेना जैसे धूमिल के समकालीन व्यक्तित्व भी। "
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