Pravasi Bharatiyon Mein Hindi Ki Kahani

view cart
Availability : Stock
  • 0 customer review

Pravasi Bharatiyon Mein Hindi Ki Kahani

Number of Pages : 232
Published In : 2018
Available In : Hardbound
ISBN : 978-93-263-5580-3
Author: Dr. Surendra Gambhir

Overview

यह पुस्तक शोध पर आधारित सोलह लेखों का संग्रह है। इसमें तेरह देशों की हिंदी की कहानी है। कहानी में हिंदी का ऐतिहासिक पक्ष भी है, शैक्षिक पक्ष भी है, और भाषा के संरक्षण और अनुरक्षण का पक्ष भी है। लेखकों ने अपनी-अपनी रुचि और प्रवीणता के अनुसार उन पक्षों पर प्रकाश डाला है। भाषा के संरक्षण और अनुरक्षण का विषय सब लेखकों ने अपने शोधपरक लेखों में सक्विमलित किया है। लेखकों के साथ विचार-विमर्श, परिवर्तन और स्पीकरण की प्रक्रिया में बीते तीन वर्षों के परिश्रम का सुखद परिणाम यह पुस्तक है। यहां प्रस्तुत लेखों का अंतिम रूप लेखकों से अनुमत है। प्रवासी भारत में हिंदी भाषा के विभिन्न पक्षों पर पिछले पैंतीस वर्षों से शोधपरक लेखन हो रहा है। तब से शोधकर्ता निरंतर लिखते चले आ रहे हैं। यह कार्य शुरू हुआ गिरमिटिया देशों में भारत से गई हिंदी की सहचरी भोजपुरी, अवधी आदि भाषाओं के साथ। किसी ने उसके ऐतिहासिक पक्ष पर लिखा तो किसी ने सामाजिक भाषा-विज्ञान की दृष्टि से उनके सामाजिक पक्ष पर अपने शोधपत्र प्रकाशित किए। सब लेखक संसार के विभिन्न देशों में बसे प्रतिष्ठित विद्वान, शोधकार्य में लगे भाषा-चिंतक हैं। इनके लेखों के माध्यम से भाषा-विज्ञान में कुछ नई अवधारणाएं सशञ्चत हुई हैं। भारत से बाहर के देशों में हिंदी की पूरी कहानी सब लेखों के समुच्चयात्मक अध्ययन से ही स्पष्ट होती है। परिशिष्ट में भारत में हिंदी की स्थिति पर तीन विक्चयात भाषा-चिन्तकों के विचारों का संग्रह है। हिन्दी की संवैधानिक स्थिति से बात शुरू होती है और आज के वैश्विक संदर्भ में व्यावसायिक जगत में हिंदी के बढ़ते चरणों का वर्णन और अंत मे प्रौद्योगिकी के विकासशील पर्यावरण में हिंदी के अस्तित्व का विश्लेषण है।

Price     Rs 400/-

Rates Are Subjected To Change Without Prior Information.

यह पुस्तक शोध पर आधारित सोलह लेखों का संग्रह है। इसमें तेरह देशों की हिंदी की कहानी है। कहानी में हिंदी का ऐतिहासिक पक्ष भी है, शैक्षिक पक्ष भी है, और भाषा के संरक्षण और अनुरक्षण का पक्ष भी है। लेखकों ने अपनी-अपनी रुचि और प्रवीणता के अनुसार उन पक्षों पर प्रकाश डाला है। भाषा के संरक्षण और अनुरक्षण का विषय सब लेखकों ने अपने शोधपरक लेखों में सक्विमलित किया है। लेखकों के साथ विचार-विमर्श, परिवर्तन और स्पीकरण की प्रक्रिया में बीते तीन वर्षों के परिश्रम का सुखद परिणाम यह पुस्तक है। यहां प्रस्तुत लेखों का अंतिम रूप लेखकों से अनुमत है। प्रवासी भारत में हिंदी भाषा के विभिन्न पक्षों पर पिछले पैंतीस वर्षों से शोधपरक लेखन हो रहा है। तब से शोधकर्ता निरंतर लिखते चले आ रहे हैं। यह कार्य शुरू हुआ गिरमिटिया देशों में भारत से गई हिंदी की सहचरी भोजपुरी, अवधी आदि भाषाओं के साथ। किसी ने उसके ऐतिहासिक पक्ष पर लिखा तो किसी ने सामाजिक भाषा-विज्ञान की दृष्टि से उनके सामाजिक पक्ष पर अपने शोधपत्र प्रकाशित किए। सब लेखक संसार के विभिन्न देशों में बसे प्रतिष्ठित विद्वान, शोधकार्य में लगे भाषा-चिंतक हैं। इनके लेखों के माध्यम से भाषा-विज्ञान में कुछ नई अवधारणाएं सशञ्चत हुई हैं। भारत से बाहर के देशों में हिंदी की पूरी कहानी सब लेखों के समुच्चयात्मक अध्ययन से ही स्पष्ट होती है। परिशिष्ट में भारत में हिंदी की स्थिति पर तीन विक्चयात भाषा-चिन्तकों के विचारों का संग्रह है। हिन्दी की संवैधानिक स्थिति से बात शुरू होती है और आज के वैश्विक संदर्भ में व्यावसायिक जगत में हिंदी के बढ़ते चरणों का वर्णन और अंत मे प्रौद्योगिकी के विकासशील पर्यावरण में हिंदी के अस्तित्व का विश्लेषण है।
Add a Review
Your Rating