(1909-1996) बंकिमचन्द्र, रवीन्द्रनाथ और शरत्चन्द्र के बाद बांग्ला साहित्य-लोक में आशापूर्णा देवी का ही एक ऐसा सुपरिचित नाम है, जिनकी हर कृति पिछले साइ वर्षों से बंगाल और उसके बाहर भी एक नयी अपेक्षा के साथ पढ़ी जाती रही हैं। ज्ञानपीठ पुरस्कार, भुवन मोहिनी स्मृति पदक और रवीन्द्र पुरस्कार से सम्मानित तथा पद्मश्री से विभूषित आशापूर्णा जी अपनी एक सौ सत्तर से भी अधिक कृतियों द्वारा सर्वभारतीय स्वरूप को गौरवांवित करती हुई आजीवन संलग्र रहीं। भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित उनकी रचनाएं हैं—सुवर्णलता, बकुलकथा, प्रारब्ध, लीला चिरन्तन, दृश्य से दृश्यान्तर और न जाने कहाँ-कहाँ (उपन्यास), किर्चियाँ एवं ये जीवन है (कहानी-संग्रह)।