Prarabdha
view cart
Availability :
Out of Stock
- 0 customer review
Prarabdha
Number of Pages : 354
Published In : 2017
Available In : Paperback
ISBN : 81-263-0949-0
Author: Ashapurna Devi
Overview
पुरुष की बड़ी से बड़ी कमज़ोरी समाज पचा लेता है लेकिन नारी को उसकी थोड़ी सी चूक के लिए भी पुरुष समाज उसे कठोर दण्ड देता है जबकि इसमें उसकी लिप्सा का अंश कहीं अधिक होता है। वास्तव में नारी अपने मूल अधिकारों से तो वंचित है, लेकिन सारे कर्तव्य और दायित्व उसके हिस्से मढ़ दिये गये हैं। आशापूर्णा का मानना है कि नारी का जीवन अवरोधों और वंचना में ही कट जाता है, जिसे उसकी तपस्या कहकर हमारा समाज गौरवांवित होता है। इस विडम्बना और नारी जाति की असहायता को ही वाणी मिली है यशस्वी बांग्ला कथाकार के इस अनुपम उपन्यास में।
Price Rs 300/-
Rates Are Subjected To Change Without Prior Information.
पुरुष की बड़ी से बड़ी कमज़ोरी समाज पचा लेता है लेकिन नारी को उसकी थोड़ी सी चूक के लिए भी पुरुष समाज उसे कठोर दण्ड देता है जबकि इसमें उसकी लिप्सा का अंश कहीं अधिक होता है। वास्तव में नारी अपने मूल अधिकारों से तो वंचित है, लेकिन सारे कर्तव्य और दायित्व उसके हिस्से मढ़ दिये गये हैं। आशापूर्णा का मानना है कि नारी का जीवन अवरोधों और वंचना में ही कट जाता है, जिसे उसकी तपस्या कहकर हमारा समाज गौरवांवित होता है। इस विडम्बना और नारी जाति की असहायता को ही वाणी मिली है यशस्वी बांग्ला कथाकार के इस अनुपम उपन्यास में।