Kirchiyan

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Kirchiyan

Number of Pages : 268
Published In : 2010
Available In : Hardbound
ISBN : 9788126319794
Author: Ashapurna Devi

Overview

ज्ञानपीठ पुरस्कार (1976) से सम्मानित आशापूर्णा देवी आधुनिक बांग्ला की अग्रणी उपन्यासकार रही हैं। कहानी-लेखन में भी वह उतनी ही सिद्धहस्त थीं। उनकी आरम्भिक कहानियाँ किशोरवय के पाठकों के लिए थीं और द्वितीय महायुद्ध के समय लिखी गयी थीं। प्रबुद्ध पाठकों के लिए पहली कहानी 'पत्नी ओ प्रेयसी’ 1937 में शारदीया, आनन्द बाजार पत्रिका में प्रकाशित हुई। नारी के इन दो अनिवार्य ध्रुवान्तों के बीच उठने वाले सवाल को पारिवारिक मर्यादा और बदलते सामाजिक सन्दर्भों में जितना आशापूर्णा देवी ने रखा है उतना सम्भवत: किसी अन्य ने नहीं। इसके बाद तो उनके अनगिनत नारी पात्रों—माँ, बहन, दादी, मौसी, दीदी, बुआ अन्य नाते-रिश्तेदार यहाँ तक कि नौकर-चाकरों की मनोदशा का सहज और प्रामाणिक चित्रण उनकी कहानियों के प्राण हैं। आशापूर्णा जी की छोटी-बड़ी कहानियों में जीवन के सामान्य एवं विशिष्टï क्षणों की ज्ञात-अज्ञात पीड़ाएँ मुखरित हुई हैं। सच पूछिए तो उन्होंने इनको वाणी से कहीं अधिक दृष्टिï दी है। इसलिए उनकी कहानियाँ पात्र, संवाद या घटना-बहुल न होती हुई भी जीवन की किसी अनकही व्याख्या को व्यंजित करती हैं। हिन्दी पाठकों को समर्पित है आशापूर्णा देवी के प्रस्तुत कहानी-संकलन का नया संस्करण।

Price     Rs 270/-

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ज्ञानपीठ पुरस्कार (1976) से सम्मानित आशापूर्णा देवी आधुनिक बांग्ला की अग्रणी उपन्यासकार रही हैं। कहानी-लेखन में भी वह उतनी ही सिद्धहस्त थीं। उनकी आरम्भिक कहानियाँ किशोरवय के पाठकों के लिए थीं और द्वितीय महायुद्ध के समय लिखी गयी थीं। प्रबुद्ध पाठकों के लिए पहली कहानी 'पत्नी ओ प्रेयसी’ 1937 में शारदीया, आनन्द बाजार पत्रिका में प्रकाशित हुई। नारी के इन दो अनिवार्य ध्रुवान्तों के बीच उठने वाले सवाल को पारिवारिक मर्यादा और बदलते सामाजिक सन्दर्भों में जितना आशापूर्णा देवी ने रखा है उतना सम्भवत: किसी अन्य ने नहीं। इसके बाद तो उनके अनगिनत नारी पात्रों—माँ, बहन, दादी, मौसी, दीदी, बुआ अन्य नाते-रिश्तेदार यहाँ तक कि नौकर-चाकरों की मनोदशा का सहज और प्रामाणिक चित्रण उनकी कहानियों के प्राण हैं। आशापूर्णा जी की छोटी-बड़ी कहानियों में जीवन के सामान्य एवं विशिष्टï क्षणों की ज्ञात-अज्ञात पीड़ाएँ मुखरित हुई हैं। सच पूछिए तो उन्होंने इनको वाणी से कहीं अधिक दृष्टिï दी है। इसलिए उनकी कहानियाँ पात्र, संवाद या घटना-बहुल न होती हुई भी जीवन की किसी अनकही व्याख्या को व्यंजित करती हैं। हिन्दी पाठकों को समर्पित है आशापूर्णा देवी के प्रस्तुत कहानी-संकलन का नया संस्करण।
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