Na Jaane Kahan Kahan
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Na Jaane Kahan Kahan
Number of Pages : 136
Published In : 2012
Available In : Hardbound
ISBN : 978-81-263-4084-2
Author: Ashapurna Devi
Overview
रीब अरुण और धनिक परिवार की लडक़ी मिंटू—ये सभी के सभी पात्र अपने अपने ढंग से जी रहे हैं। उदाहरण के लिए प्रवासजीवन विपतनीक हैं। घर के किसी मामले में अब उनसे पहले की तरह कोई राय नहीं लेता। उनसे बातचीत के लिए किसी के पास समय नहीं है। रिश्तेदार आते नहीं हैं, क्योंकि अपने घर में किसी को ठहराने का अधिकार तक उन्हें नहीं है। इन सबसे दुखी होकर भी वह विचलित नहीं होते। सोचते हैं कि हम ही हैं जो समस्या या असुविधा को बड़ी बनाकर देखते हैं, अन्यथा इस दुनिया में लाखों लोग हैं जो किन्हीं कारणों से हमसे भी अधिक दुखी हैं। और भी अनेक-अनेक प्रसंग हैं जो इस गाथा के प्रवाह में आ मिलते हैं। शायद यही है दुनिया अथवा दुनिया का यही नियम है। जहाँ तहाँ, जगह-जगह यही तो हो रहा है। उपन्यास का विशेष गुण है कथ्य की रोचकता। हर पाठक के साथ कहीं-न-कहीं कथ्य का रिश्ता जुड़ जाता है। जिन्होंने आशापूर्णा देवी के उपन्यासों को
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