Yeh Chandrama Kiska Hai

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Yeh Chandrama Kiska Hai

Number of Pages :
Published In : 2020
Available In : Hardbound
ISBN : 9789387919860
Author: Surendra Kumar Mishra

Overview

यह चन्द्रमा किसका है? भिन्न-भिन्न भाव-भूमियों से निसृत इस कृति के एक-एक निबन्ध अंतर्जगत की पुलक, हाहाकार, चिन्तन व उसकी गंभीरता को अभिव्यक्त करते हैं और भावनाओं व बौद्धिकता का समन्वय कर उन्हें एक आकर्षक स्वरूप प्रदान करते हैं। हृदय व मस्तिष्क दोनों के तल पर नाचती हुई भीतर की लहरें यहाँ शब्दों की देह धारण कर निर्जीव कागज के पन्नों पर थिरक रही हैं और इन पन्नों को भी तरंगित व गतिमान करते सजीव कर दी हैं। अपमान के आँसू, उपेक्षा की वेधक दृष्टि और सांसारिक विश्लेषण का दा्र्र्र्र्र्रर्शनिक कायांतरण इन शब्दों की आत्मा बनकर जीवन को साँसों से भरते हैं और आंतरिक दृढ़ता प्रदान कर ‘जीवन को जीवन’ देते हैं। इन निबंधों में निजी क्षणों की अनुभूतियाँ भी हैं और सार्वजनिक जीवन की अवधारणाए भी। स्वयं को पूर्ण रूप से व्यक्त करने का यह प्रयत्न तो समय की कसौटी पर कसा जायेगा, किन्तु यह तय है कि काल के कूड़ेदान में यह कभी फेंका नहीं जाएगा। शाश्वतता इसकी लय है, स्थिरता इसका संगीत। फिर इसके शब्द तो इसके बोल हैं ही। काल की छाती पर टिक कर अमर होना यदि साहित्य का अंतिम लक्ष्य हो, तो इस समरांगन में यह सृजन कुछ समय तक ‘खम’ ठोंकेगा ही। बुद्धि व भावना, दोनों के संयुक्त मोर्चे पर यह कृति कुछ हलचल मचायेगी ही। संसार की समष्टि और वैयक्तिक हृदय की नि:संग व्यष्टि, दोनों की झलक दिखाती यह पुस्तक अब समय के परीक्षण हेतु उतरी ही है।

Price     Rs 220/-

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यह चन्द्रमा किसका है? भिन्न-भिन्न भाव-भूमियों से निसृत इस कृति के एक-एक निबन्ध अंतर्जगत की पुलक, हाहाकार, चिन्तन व उसकी गंभीरता को अभिव्यक्त करते हैं और भावनाओं व बौद्धिकता का समन्वय कर उन्हें एक आकर्षक स्वरूप प्रदान करते हैं। हृदय व मस्तिष्क दोनों के तल पर नाचती हुई भीतर की लहरें यहाँ शब्दों की देह धारण कर निर्जीव कागज के पन्नों पर थिरक रही हैं और इन पन्नों को भी तरंगित व गतिमान करते सजीव कर दी हैं। अपमान के आँसू, उपेक्षा की वेधक दृष्टि और सांसारिक विश्लेषण का दा्र्र्र्र्र्रर्शनिक कायांतरण इन शब्दों की आत्मा बनकर जीवन को साँसों से भरते हैं और आंतरिक दृढ़ता प्रदान कर ‘जीवन को जीवन’ देते हैं। इन निबंधों में निजी क्षणों की अनुभूतियाँ भी हैं और सार्वजनिक जीवन की अवधारणाए भी। स्वयं को पूर्ण रूप से व्यक्त करने का यह प्रयत्न तो समय की कसौटी पर कसा जायेगा, किन्तु यह तय है कि काल के कूड़ेदान में यह कभी फेंका नहीं जाएगा। शाश्वतता इसकी लय है, स्थिरता इसका संगीत। फिर इसके शब्द तो इसके बोल हैं ही। काल की छाती पर टिक कर अमर होना यदि साहित्य का अंतिम लक्ष्य हो, तो इस समरांगन में यह सृजन कुछ समय तक ‘खम’ ठोंकेगा ही। बुद्धि व भावना, दोनों के संयुक्त मोर्चे पर यह कृति कुछ हलचल मचायेगी ही। संसार की समष्टि और वैयक्तिक हृदय की नि:संग व्यष्टि, दोनों की झलक दिखाती यह पुस्तक अब समय के परीक्षण हेतु उतरी ही है।
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