Vismrit Nibandh

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Vismrit Nibandh

Number of Pages : 254
Published In : 2017
Available In : Hardbound
ISBN : 978-93-263-5555-1
Author: Ed. Leeladhar Mandloi

Overview

'विस्मृत निबन्ध’ कृति यूँ तो सभी पाठक वर्ग के लिए है, किन्तु हमने इसका प्रकाशन विशेष रूप से उन विद्यार्थियों के लिए किया है, जो सन्दर्भ सामग्री के अभाव में अपने शोधकर्म में एक स्तर पर पहुँचकर असहाय अनुभव करते हैं। विद्यार्थियों को न केवल अपने काम में इससे सहायता मिलेगी, बल्कि वे निबन्ध के इतिहास, परम्परा और उनकी निर्मिति के वैविध्य पक्ष, भाषा और कहन के शिल्प को भी जान सकेंगे। इस पुस्तक में हिन्दी साहित्य के शीर्षस्थानीय 43 लेखकों के साहित्य जगत में विस्मृत हुए निबन्धों का संयोजन किया गया है। जिसमें प्रमुख हैं—आनन्द नारायण शर्मा, केशवचन्द्र, पद्मङ्क्षसह, रामदहिन, रामनाथ सुमन, रायकृष्ण, गोविन्द नारायण मिश्र, प्रेमचन्द्र, मुक्तिबोध, रामचन्द्र शुक्ल, रवीन्द्रनाथ टैगोर, अयोध्यासिंह उपाध्याय, जयशंकर प्रसाद, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, महादेवी वर्मा, महावीर प्रसाद द्विवेदी और हरिशंकर परसाई तक यह सूची जाती है। इस पुस्तक को सन्दर्भ ग्रन्थ की भाँति भी अपने पुस्तकालय में रखा जा सकता है। वास्तव में यह मात्र किताब न होकर निबन्धों के माध्यम से सांस्कृतिक यात्रा भी है।

Price     Rs 350/-

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'विस्मृत निबन्ध’ कृति यूँ तो सभी पाठक वर्ग के लिए है, किन्तु हमने इसका प्रकाशन विशेष रूप से उन विद्यार्थियों के लिए किया है, जो सन्दर्भ सामग्री के अभाव में अपने शोधकर्म में एक स्तर पर पहुँचकर असहाय अनुभव करते हैं। विद्यार्थियों को न केवल अपने काम में इससे सहायता मिलेगी, बल्कि वे निबन्ध के इतिहास, परम्परा और उनकी निर्मिति के वैविध्य पक्ष, भाषा और कहन के शिल्प को भी जान सकेंगे। इस पुस्तक में हिन्दी साहित्य के शीर्षस्थानीय 43 लेखकों के साहित्य जगत में विस्मृत हुए निबन्धों का संयोजन किया गया है। जिसमें प्रमुख हैं—आनन्द नारायण शर्मा, केशवचन्द्र, पद्मङ्क्षसह, रामदहिन, रामनाथ सुमन, रायकृष्ण, गोविन्द नारायण मिश्र, प्रेमचन्द्र, मुक्तिबोध, रामचन्द्र शुक्ल, रवीन्द्रनाथ टैगोर, अयोध्यासिंह उपाध्याय, जयशंकर प्रसाद, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, महादेवी वर्मा, महावीर प्रसाद द्विवेदी और हरिशंकर परसाई तक यह सूची जाती है। इस पुस्तक को सन्दर्भ ग्रन्थ की भाँति भी अपने पुस्तकालय में रखा जा सकता है। वास्तव में यह मात्र किताब न होकर निबन्धों के माध्यम से सांस्कृतिक यात्रा भी है।
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