Matee Ho Gayee Sona
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Number of Pages : 112
Published In : 2001
Available In : Hardbound
ISBN : 8126306572
Author: Kanhaiyalal Mishra 'Prabhakar'
Overview
मैं साहित्यकार की सम्पूर्ण ईमानदारी के साथ इस स्थिति में हूँ कि कहूँ—इन कथाओं को मैंने अपने खून से लिखा है : कलेजे के खून से, आत्मा के खून से; और कलेजे का खून ही इन कथाओं की कला है। इन कथाओं के पात्र मेरे लिए कभी कोरे पात्र नहीं रहे—वे मेरे निकट सदा सजीव बन्धु रहे हैं। मैंने उनके साथ बातें की हैं, मैं उनके साथ रोया-हँसा हूँ, और हँसी की बात नहीं, फाँसी भी चढ़ा हूँ, जीते जी जला भी हूँ! शायद यकोरा अहंकार ही हो, पर मुझे तो सदा यही लगा है कि वे इतिहास के कंकाल थे, मैंने उन्हें अपना रक्त-मांस देकर यों खड़ा कर दिया है। इस स्थिति में भारत की नयी पीढ़ी को जब आज उन्हें भेंट कर रहा हूँ तो अपना रक्त ही तो भेंट कर रहा हूँ। इसका हर पात्र एक विशिष्ट युग का प्रतिनिधि है, प्रतीक है। मेरी शुभकामना है कि मेरे देश की नयी पीढ़ी मेरे रक्त से तरोताजा हो जीवन के क्षेत्र में आगे बढ़े!