Meer

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Number of Pages : 294
Published In : 2016
Available In : Hardbound
ISBN : 978-81-263-5259-8
Author: Ramnath 'Suman'

Overview

उर्दू-काव्य से मीर को निकाल दीजिए तो जैसे गंगा को हिन्दुस्तान से निकाल दिया। मीर में अनुभूति की गहराइयाँ तड़पती हैं, वहाँ दिल का दामन आँसुओं से तर है। मीर में एक अजब-सी खुदफरामोशी है, एक बाँकपन, एक अकड़, एक $फकीरी तथा ज़बान की वह घुलावट है, जो किसी दूसरे को नसीब नहीं हुई। बिना डूबे मीर को पाना मुश्किल है। ‘सहल है मीर को समझना क्या, हर सुखन उसका एक मुकाम से है’। सर्वांगीण समीक्षा के साथ इस पुस्तक में मीर नज़दीक से व्यक्त हुए हैं। सुमन जी लगभग चालीस वर्षों तक उर्दू-काव्य के गहन अध्येता रहे। उनमें गहरी पकड़ थी, वह कवि के मानस में उतरते थे। मीर के इस अध्ययन को, जो सुमन जी की पैनी दृष्टि से गुज़रकर आया है, पढक़र आपको मीर के सम्बंध में उर्दू में कुछ पढऩे को नहीं रह जाता, क्योंकि इसमें मीर पर हुए सम्पूर्ण अद्यतन श्रम का समावेश है। प्रस्तुत है पुस्तक का नया संस्करण।

Price     Rs 400/-

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उर्दू-काव्य से मीर को निकाल दीजिए तो जैसे गंगा को हिन्दुस्तान से निकाल दिया। मीर में अनुभूति की गहराइयाँ तड़पती हैं, वहाँ दिल का दामन आँसुओं से तर है। मीर में एक अजब-सी खुदफरामोशी है, एक बाँकपन, एक अकड़, एक $फकीरी तथा ज़बान की वह घुलावट है, जो किसी दूसरे को नसीब नहीं हुई। बिना डूबे मीर को पाना मुश्किल है। ‘सहल है मीर को समझना क्या, हर सुखन उसका एक मुकाम से है’। सर्वांगीण समीक्षा के साथ इस पुस्तक में मीर नज़दीक से व्यक्त हुए हैं। सुमन जी लगभग चालीस वर्षों तक उर्दू-काव्य के गहन अध्येता रहे। उनमें गहरी पकड़ थी, वह कवि के मानस में उतरते थे। मीर के इस अध्ययन को, जो सुमन जी की पैनी दृष्टि से गुज़रकर आया है, पढक़र आपको मीर के सम्बंध में उर्दू में कुछ पढऩे को नहीं रह जाता, क्योंकि इसमें मीर पर हुए सम्पूर्ण अद्यतन श्रम का समावेश है। प्रस्तुत है पुस्तक का नया संस्करण।
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