Soot Ki Kahani

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Soot Ki Kahani

Number of Pages : 270
Published In : 2012
Available In : Hardbound
ISBN : 9789326350532
Author: Gopal Kamal

Overview

"सूत की कहानी विश्व की जितनी भी सभ्यताएँ हैं प्राय सभी के प्रारम्भिक इतिहास में ऊन और कपास के सूत से बने वस्त्र का जिक्र कमोबेश मिलता है। इसमें भारत और मिस्र की सभ्यताएँ खास उल्लेखनीय हैं। सूती कपड़ोंं मेंं इन्हें विशेष महारत हासिल रही है।... ईसा की कई सदियोंं पूर्व भूमध्यसागर के तटीय प्रदेशों में भारत के सूती कपड़ोंं का यह प्रताप था कि अन्तर्राष्टï्रीय बाजार में उसे व्यापारिक विनिमय में सबसे विश्वसनीय माध्यम के रूप में प्रयोग किया जाता रहा। भारतीय सूती वस्त्र मात्र कोरे और सफेद ही नहीं बनते थे, उनकी रँगाई-छपाई और उनपर चित्रकारी की कला भी ईसापूर्व कई सदियोंं से भलीभाँति विकसित होती रहीं। इसी इतिहास के अरण्य से कथा का सन्धान गोपाल कमल की प्रस्तुत काव्यकृति 'सूत की कहानी’का उपजीव्य है। इसमें दरअसल सूत की दिक्काल-यात्रा का काव्यमय मानचित्र रचने का विरल प्रयास है। व्यक्तिगत सन्दर्भों और स्मृतियोंं ने रचना को नितान्त आत्मीय बना दिया है। कवियों को संस्कृत के काव्याचार्यों ने 'निरंकुश’कहा है। वह निरंकुश जिद गोपाल कमल मेंं कतई कम नहीं है। जो बातें ललित गद्य में सम्भव थीं उन्हें रचनकार ने कविता के कलेवर मेंं सफल बनाने का जोखिम उठाया है। और इस दुस्साहसिक जोखिम का परिणाम प्रीतिकर सिद्ध हुआ है। कृति के विषय का अनूठापन निश्चय ही उसे अनूठा बनाता है। —वीरेन्द्र कुमार बरनवाल "

Price     Rs 320/-

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"सूत की कहानी विश्व की जितनी भी सभ्यताएँ हैं प्राय सभी के प्रारम्भिक इतिहास में ऊन और कपास के सूत से बने वस्त्र का जिक्र कमोबेश मिलता है। इसमें भारत और मिस्र की सभ्यताएँ खास उल्लेखनीय हैं। सूती कपड़ोंं मेंं इन्हें विशेष महारत हासिल रही है।... ईसा की कई सदियोंं पूर्व भूमध्यसागर के तटीय प्रदेशों में भारत के सूती कपड़ोंं का यह प्रताप था कि अन्तर्राष्टï्रीय बाजार में उसे व्यापारिक विनिमय में सबसे विश्वसनीय माध्यम के रूप में प्रयोग किया जाता रहा। भारतीय सूती वस्त्र मात्र कोरे और सफेद ही नहीं बनते थे, उनकी रँगाई-छपाई और उनपर चित्रकारी की कला भी ईसापूर्व कई सदियोंं से भलीभाँति विकसित होती रहीं। इसी इतिहास के अरण्य से कथा का सन्धान गोपाल कमल की प्रस्तुत काव्यकृति 'सूत की कहानी’का उपजीव्य है। इसमें दरअसल सूत की दिक्काल-यात्रा का काव्यमय मानचित्र रचने का विरल प्रयास है। व्यक्तिगत सन्दर्भों और स्मृतियोंं ने रचना को नितान्त आत्मीय बना दिया है। कवियों को संस्कृत के काव्याचार्यों ने 'निरंकुश’कहा है। वह निरंकुश जिद गोपाल कमल मेंं कतई कम नहीं है। जो बातें ललित गद्य में सम्भव थीं उन्हें रचनकार ने कविता के कलेवर मेंं सफल बनाने का जोखिम उठाया है। और इस दुस्साहसिक जोखिम का परिणाम प्रीतिकर सिद्ध हुआ है। कृति के विषय का अनूठापन निश्चय ही उसे अनूठा बनाता है। —वीरेन्द्र कुमार बरनवाल "
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