Din Jyon Pahar Ke

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Din Jyon Pahar Ke

Number of Pages : 160
Published In : 2013
Available In : Hardbound
ISBN : 9789326352178
Author: Anoop Ashesh

Overview

"दिन ज्यों पहाड़ के भारतीय संस्कृति की जीवन्तता उसकी लयात्मक अनुगूँज, साधारण से साधारण आदमी के उत्सव, जीवन-कलाएँ, उसके त्यौहार और शोक भारतीय अस्मिता के गरमाहट-भरे सांस्कृतिक स्पर्श हैं। ये ही हमारी अस्मिता की पहचान हैं। यह गरमाहट, यह पहचान हिन्दी के पारम्परिक गीतों से आगे विकसित होती हुई आज नवगीतों के रूप में स्थापित है। समकालीन आधुनिक कविता-धारा का संवाहक आज केवल नवगीत है। कविता समय को जीती है। समय को समाज-परिवेश कविता के माध्यम से जीता है। नवगीत की सांस्कृतिक और लोक चेतना घर-परिवार से जुड़ी है। लेकिन यह घर-परिवार सम्पूर्ण राष्ट्रीय अस्मिता और उसकी संवेदना के साथ अभिन्न है। आंचलिकता, ग्राम बोध, लोक चेतना, लोक संवेदना, ग्राम-सन्दर्भों की स्थिति अलग से विवेचन की अपेक्षा रखती है। अनूप अशेष के नवगीतों में रोमानी चित्रण नहीं है। अपितु गत दशकों में पनपने वाले आर्थिक-राजनीतिक शोषण, व्यवस्था के क्रूर उत्पीडऩ के दंश का चित्रण है, यथार्थ है। यह सन्दर्भ हमारी आलोचना की दिशा तय करेगा। एक पठनीय कृति। "

Price     Rs 160/-

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"दिन ज्यों पहाड़ के भारतीय संस्कृति की जीवन्तता उसकी लयात्मक अनुगूँज, साधारण से साधारण आदमी के उत्सव, जीवन-कलाएँ, उसके त्यौहार और शोक भारतीय अस्मिता के गरमाहट-भरे सांस्कृतिक स्पर्श हैं। ये ही हमारी अस्मिता की पहचान हैं। यह गरमाहट, यह पहचान हिन्दी के पारम्परिक गीतों से आगे विकसित होती हुई आज नवगीतों के रूप में स्थापित है। समकालीन आधुनिक कविता-धारा का संवाहक आज केवल नवगीत है। कविता समय को जीती है। समय को समाज-परिवेश कविता के माध्यम से जीता है। नवगीत की सांस्कृतिक और लोक चेतना घर-परिवार से जुड़ी है। लेकिन यह घर-परिवार सम्पूर्ण राष्ट्रीय अस्मिता और उसकी संवेदना के साथ अभिन्न है। आंचलिकता, ग्राम बोध, लोक चेतना, लोक संवेदना, ग्राम-सन्दर्भों की स्थिति अलग से विवेचन की अपेक्षा रखती है। अनूप अशेष के नवगीतों में रोमानी चित्रण नहीं है। अपितु गत दशकों में पनपने वाले आर्थिक-राजनीतिक शोषण, व्यवस्था के क्रूर उत्पीडऩ के दंश का चित्रण है, यथार्थ है। यह सन्दर्भ हमारी आलोचना की दिशा तय करेगा। एक पठनीय कृति। "
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