Ishwar Nahin Nind Chahiye
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Ishwar Nahin Nind Chahiye
Number of Pages : 120
Published In : 2018
Available In : Hardbound
ISBN : 978-81-936555-3-5
Author: Anuradha Singh
Overview
अनुराधा सिंह ने अपने पहले ही संग्रह की इन कविताओं के मार्फत हिन्दी कविता के समकालीन परिदृश्य में एक सार्थक हस्तक्षेप किया है। दीप्त जीवनानुभव, संश्लिष्ट संवेदना और अभिव्यक्ति की सघनता के स्तर पर इन कविताओं में बहुत कुछ ऐसा है जो उनकी एक सार्थक और मौलिक पहचान बनाने में सहायक है। हिन्दी कविता में यह बहुत सारे सन्दर्भों के साथ रच बस कर अपने वजूद की समूची इंटेंसिटी के साथ एक लम्बे अरसे बाद सामने आया है—क्या स्त्री मन की ऐसी कोई काव्य अभिव्यक्ति हमें इस समय कहीं और दिखाई देती है जो इस कदर सघन हो इस कदर विह्वल,जिसमें रिफ्लेक्शंस भी हों, अभीप्साएँ भी, शिकायतें और ज़ख्म भी हों, कसक भी और सँभलने की आत्म सजगता भी। इन कविताओं में महज स्त्री अस्मिता की ज़मीन या पितृ-सत्तात्मक समाज से संवाद के ही सन्दर्भ नहीं है, ये कविताएँ उससे अधिक इतिहास और जटिल समय की अन्त:वेदना और बेकली की कविताएँ हैं। वह स्त्री जो एकदम पास-पड़ोस की है और वे तमाम स्त्रियाँ जो क्यूबा, त्रिनिदाद, ओहायो, अफगानिस्तान, सीरिया या लीबिया में घिरी हुई हैं, उन सबके संसार यहाँ एक दूसरे में घुल मिल गये हैं। तमाम स्त्रियाँ जो ‘गलाज़त के प्रति सहनशील’ और ‘दुनिया के पिछवाड़े में बने घूरे सी विनम्र हैं’, ‘जो साँवली मछलियों सी रक्तहीन पाँवों से चलती आती हैं दुनिया की रेत पर’ और ‘अपनी कमनीय देह लिये दूसरों का स्वाद’ बन जाती हैं—यह उनका वह क्लेश है जो एक सार्वभौमिक समय को रच रहा है। ऐसी कम ही कविताएँ इस समय दृश्य में हैं जिनमें निरे तर्क की कसावट नहीं, केवल एक भंगिमा भर नहीं, बल्कि कुछ वह है जो लगातार शिफ्टिंग करता है, छवियों व अर्थबहुलता के संसार को रचता है और उन अबूझ इलाकों में ले जाता है जो केवल और केवल एक ‘जेनुइन’ कविता द्वारा ही सम्भव है। इस स्मार्ट, अभ्यासपरक, यान्त्रिक समझदारी से भरे समय में यह एक बड़ा और कारगर हस्तक्षेप होगा। हिन्दी की समकालीन कविता में यह एक ऐसी दुर्लभ सजगता है जहाँ हृदय विदारक क्रन्दन भी है और एक गज़ब का कलात्मक संयम भी। हिन्दी कविता की दुनिया में यह संग्रह बहुत कुछ नया जोड़ेगा यह उम्मीद की जानी चाहिये।
Price Rs 220/-
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