Nambardar Hua Nakhuda

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Nambardar Hua Nakhuda

Number of Pages : 122
Published In : 2010
Available In : Hardbound
ISBN : 9788126318698
Author: Vijay

Overview

"नम्बरदार हुआ ना$खुदा कथाकार विजय की रचनाओं में महानगरीय अनुभवों का समावेश होता है। 'नम्बरदार हुआ ना$$खुदा’विजय का नया उपन्यास है, जिसमें मुख्यधारा से लेकर हाशिये पर जी रही स्त्रियों की मर्मस्पर्शी दास्तान है। समाजसेवी संस्थाएँ, राजनैतिक दल और मनुष्यता का दम भरती शक्तियाँ कितने मुखौटे चढ़ाये हैं, इसे विजय ने बखूबी चित्रित किया है। 'दिल्ली’कथा के केन्द्र में है। स्वाभाविक है राजनीति का बारीक अध्ययन उपन्यास को एक $खास तेवर प्रदान करता है। विजय ने इस उपन्यास को समकालीन स्त्री के संघर्षों और विचलनों का दस्तावेज बना दिया है। 'नम्बरदार हुआ ना$$खुदा’की विशेषता यह भी है कि लेखक ने समाज का एक तटस्थ मूल्यांकन किया है। विमर्शों की अतिवादिता से यह उपन्यास मुक्त है। आज के जीवन की अनेकानेक समस्याओं पर कथाकार की पैनी नज़र है। विजय ने स्वार्थ के बढ़ते प्रकोप का विवरण इस तरह दिया है कि वह व्यंग्य के नये लेखकीय आयाम उद्घाटित करता है। एक पठनीय और संग्रहणीय उपन्यास। "

Price     Rs 140/-

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"नम्बरदार हुआ ना$खुदा कथाकार विजय की रचनाओं में महानगरीय अनुभवों का समावेश होता है। 'नम्बरदार हुआ ना$$खुदा’विजय का नया उपन्यास है, जिसमें मुख्यधारा से लेकर हाशिये पर जी रही स्त्रियों की मर्मस्पर्शी दास्तान है। समाजसेवी संस्थाएँ, राजनैतिक दल और मनुष्यता का दम भरती शक्तियाँ कितने मुखौटे चढ़ाये हैं, इसे विजय ने बखूबी चित्रित किया है। 'दिल्ली’कथा के केन्द्र में है। स्वाभाविक है राजनीति का बारीक अध्ययन उपन्यास को एक $खास तेवर प्रदान करता है। विजय ने इस उपन्यास को समकालीन स्त्री के संघर्षों और विचलनों का दस्तावेज बना दिया है। 'नम्बरदार हुआ ना$$खुदा’की विशेषता यह भी है कि लेखक ने समाज का एक तटस्थ मूल्यांकन किया है। विमर्शों की अतिवादिता से यह उपन्यास मुक्त है। आज के जीवन की अनेकानेक समस्याओं पर कथाकार की पैनी नज़र है। विजय ने स्वार्थ के बढ़ते प्रकोप का विवरण इस तरह दिया है कि वह व्यंग्य के नये लेखकीय आयाम उद्घाटित करता है। एक पठनीय और संग्रहणीय उपन्यास। "
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