Doob-Dhaan

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Doob-Dhaan

Number of Pages : 184
Published In : 2007
Available In : Hardbound
ISBN : 8126313102
Author: Anamika

Overview

"दूब-धान अनामिका की कविताओं का नया संग्रह है 'दूब-धान’। इन कविताओं में एक आधुनिक भारतीय स्त्री अपने भीतर की खिड़की से बहकर आता संगीत सुनती है। मोहक विलम्बित स्वरों में बजता हुआ यह संगीत बेताबियों के तिलिस्म की तरह पाठक तक सम्प्रेेषित होता है। वैसे हर दूसरे तिलिस्म की तरह इसमें भी एक खास तरह का जोखिम है। अनामिका की कविताएँ ठीक उस समय आपसे संवाद करती हैं, जब आप आँखें बन्द करके ध्यान करते हैं, या फिर जेबों में हाथ डाले अपने इलाके की किसी शान्त सड़क पर, खुद में खोए हुए चहलकदमी कर रहे होते हैं। आपके कदम ठीक उसी तरह ठिठक जाते हैं जैसे कोई स्वरबद्ध धार्मिक कोरस किसी बुद्धिजीवी नास्तिक को क्षण भर के लिए निश्चल कर देता है। एक स्त्री, जो खुद अपनी पड़ोसिन है, अनगिनत शब्दों में वे सवाल बार-बार पूछती है जो आप अक्सर सुनना नहीं चाहते। आप चाहें तो उन प्रश्नों से शुरुआत कर सकते हैं, जो वैशाली की नगरवधू ने कभी अपने-आप से पूछे थे। अगर इतिहास में न जाना चाहें तो 'अंकल’के बोझ के तले दबी कमसिन सेक्स-वर्कर या यौन-दासी के सवालों का सामना कर सकते हैं। स्त्री-देह के इतिहास के इन दो सिरों के बीच न जाने कितने मुकामों पर कितनी गृहलक्ष्मियाँ और होमवर्क कराती हुई माताएँ समाधि लगाए बैठी हैं। उनकी तपस्या भी प्रश्नाकुल करती है। सवालों की यह अर्थगर्भित स्वर-लिपि स्त्री के ऊहापोह और उससे हाथ-भर दूर बैठे पुरुष के बीच की गुमसुम बहस के तत्त्वों से मिल कर रची गयी है। अनामिका सिर्फï कविता में ही नहीं, बल्कि अपने सम्पूर्ण लेखन में नारी-दृष्टिï की एक उदार सांस्कृतिक प्रवक्ता बनकर उभरी हैं। उनका स्वर नयी सहस्राब्दी का स्वर है,जिसकी थिर हलचलों में कुलबुलाते कोमल सवाल अपनी तमाम $िफतरतों के साथ स्थापित विमर्शों को अस्थिर करते चले जाते हैं। "

Price     Rs 140/-

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"दूब-धान अनामिका की कविताओं का नया संग्रह है 'दूब-धान’। इन कविताओं में एक आधुनिक भारतीय स्त्री अपने भीतर की खिड़की से बहकर आता संगीत सुनती है। मोहक विलम्बित स्वरों में बजता हुआ यह संगीत बेताबियों के तिलिस्म की तरह पाठक तक सम्प्रेेषित होता है। वैसे हर दूसरे तिलिस्म की तरह इसमें भी एक खास तरह का जोखिम है। अनामिका की कविताएँ ठीक उस समय आपसे संवाद करती हैं, जब आप आँखें बन्द करके ध्यान करते हैं, या फिर जेबों में हाथ डाले अपने इलाके की किसी शान्त सड़क पर, खुद में खोए हुए चहलकदमी कर रहे होते हैं। आपके कदम ठीक उसी तरह ठिठक जाते हैं जैसे कोई स्वरबद्ध धार्मिक कोरस किसी बुद्धिजीवी नास्तिक को क्षण भर के लिए निश्चल कर देता है। एक स्त्री, जो खुद अपनी पड़ोसिन है, अनगिनत शब्दों में वे सवाल बार-बार पूछती है जो आप अक्सर सुनना नहीं चाहते। आप चाहें तो उन प्रश्नों से शुरुआत कर सकते हैं, जो वैशाली की नगरवधू ने कभी अपने-आप से पूछे थे। अगर इतिहास में न जाना चाहें तो 'अंकल’के बोझ के तले दबी कमसिन सेक्स-वर्कर या यौन-दासी के सवालों का सामना कर सकते हैं। स्त्री-देह के इतिहास के इन दो सिरों के बीच न जाने कितने मुकामों पर कितनी गृहलक्ष्मियाँ और होमवर्क कराती हुई माताएँ समाधि लगाए बैठी हैं। उनकी तपस्या भी प्रश्नाकुल करती है। सवालों की यह अर्थगर्भित स्वर-लिपि स्त्री के ऊहापोह और उससे हाथ-भर दूर बैठे पुरुष के बीच की गुमसुम बहस के तत्त्वों से मिल कर रची गयी है। अनामिका सिर्फï कविता में ही नहीं, बल्कि अपने सम्पूर्ण लेखन में नारी-दृष्टिï की एक उदार सांस्कृतिक प्रवक्ता बनकर उभरी हैं। उनका स्वर नयी सहस्राब्दी का स्वर है,जिसकी थिर हलचलों में कुलबुलाते कोमल सवाल अपनी तमाम $िफतरतों के साथ स्थापित विमर्शों को अस्थिर करते चले जाते हैं। "
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