Sanson Ke Prachin Gramophone Sarikhe Is Baje Par
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Sanson Ke Prachin Gramophone Sarikhe Is Baje Par
Number of Pages : 96
Published In : 2017
Available In : Hardbound
ISBN : 978-93-263-5567-4
Author: Shirish Kumar Maourya
Overview
ये प्रलाप वास्तव में प्रलाप नहीं बल्कि प्रतिरोध हैं। इसे समाज में समकालीन कविता के 'क्रिएटिव स्पेस’की पड़ताल भी कह सकते हैं। एक तरह से ये कवि का डिलीरियम है जो हैल्यूसिनेशन तक पहुँच चुका है और 'साहित्य समाज के आगे चलने वाली इकाई’की जानिब से देखें तो ये आमजन के प्रलापी होने की शुरुआत है। अगर व्यवस्थाएँ नहीं बदलीं तो आम आदमी भी यूँ ही नींद में चलेगा, शून्य में ताकेगा, खुद से बड़बड़ाएगा और धीरे-धीरे पागल होता जाएगा। ये प्रलाप इसलिए हैं। इसलिए कवि 'सुबह तक हर अँधेरा जागकर बिताता है।’ 'राग मालकौंस’, 'मुक्तिबोध’और 'गाँधी’को याद करते हुए वो ऐसी स्थिति में पहुँचता है, जहाँ सत्ता—'जनता को मनुष्य से घोड़े में बदल देने की अपनी पुरानी ख़्वाहिश’पूरी करती सा$फ नज़र आती है। ऐसा नहीं है कि कवि का प्रलाप मात्र व्यवस्था के दंश से दुख के कारण है—'दुखी होना मेरी आदत हो गयी है।
Price Rs 160/-
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