Lokleela

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Lokleela

Number of Pages : 160
Published In : 2017
Available In : Hardbound
ISBN : 0
Author: Rajendra Lahariya

Overview

राजेन्द्र लहरिया का यह उपन्यास 'लोकलीला’ ग्राम्य-जन-जीवन का आख्यान है। पर यह आख्यान ग्रामीण-जन-जीवन की सतह पर दिखाई देनेवाली गतिविधियों का ही नहीं; बल्कि उनकी तहों में मौजूद सामन्ती एवं मनुष्यविरोधी प्रवृत्तियों की शिनाख्त का भी है। 'लोकलीला’ उपन्यास जमींदारी काल के सरेआम खुले-क्रूर सामन्ती चेहरे से लेकर भारत को आज़ादी मिलने के बाद के लगभग सत्तर साल गुजरने तक के समय के दौरान मौजूद रहे आये लोकतन्त्रीय मुखावरण के पीछे छिपे जनविरोधी और अमानवीय नवसामन्ती चेहरे की पहचान को अपने कथा-कलेवर में समेटता है। 'लोकलीला’ उपन्यास लोकतन्त्र के उस 'अँधेरे’ की आख्या-कथा है, जो देश में लोकतान्त्रिक व्यवस्था-विधान के रहे आने के बावजूद, लोकतन्त्र को एक छद्म साबित करता हुआ अभी तक लगातार तारी है।

Price     Rs 280/-

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राजेन्द्र लहरिया का यह उपन्यास 'लोकलीला’ ग्राम्य-जन-जीवन का आख्यान है। पर यह आख्यान ग्रामीण-जन-जीवन की सतह पर दिखाई देनेवाली गतिविधियों का ही नहीं; बल्कि उनकी तहों में मौजूद सामन्ती एवं मनुष्यविरोधी प्रवृत्तियों की शिनाख्त का भी है। 'लोकलीला’ उपन्यास जमींदारी काल के सरेआम खुले-क्रूर सामन्ती चेहरे से लेकर भारत को आज़ादी मिलने के बाद के लगभग सत्तर साल गुजरने तक के समय के दौरान मौजूद रहे आये लोकतन्त्रीय मुखावरण के पीछे छिपे जनविरोधी और अमानवीय नवसामन्ती चेहरे की पहचान को अपने कथा-कलेवर में समेटता है। 'लोकलीला’ उपन्यास लोकतन्त्र के उस 'अँधेरे’ की आख्या-कथा है, जो देश में लोकतान्त्रिक व्यवस्था-विधान के रहे आने के बावजूद, लोकतन्त्र को एक छद्म साबित करता हुआ अभी तक लगातार तारी है।
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