Prem Ki Bhootkatha

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Prem Ki Bhootkatha

Number of Pages : 144
Published In : 2012
Available In : Hardbound
ISBN : 978-81-263-4004-0
Author: Vibhuti Narain Rai

Overview

भारतीय संस्कृति में पन्ना धाय का नाम मातृत्व, वात्सल्य, करुणा,साहस एवं बलिदान का शाश्वत प्रतीक बन गया है। मेवाड़ राजसिंहासन के उत्तराधिकारी बालक उदयसिंह को बनवीर से बचाने के लिए पन्ना धाय जो मार्ग निकालती है, वह अद्वितीय है। अपने बेटे को उदय के स्थान पर सुलाकर पन्ना उदय को राजसेवक बारी के द्वारा सुरक्षित स्थान तक पहुँचा देती है। ...अन्तत: पन्ना धाय की सूझबूझ और हिम्मत से उदय सिंह राजसिंहासन पर आरूढ़ होता है। कथानक प्रख्यात है और इसे आधार बनाकर अनेक रचनाएँ लिखी गयी हैं। शचिन सेनगुप्ता ने बांग्ला में ‘पन्ना दाई’ नाम से नाटक लिखा। इसी नाटक का अनुवाद नेमिचन्द्र जैन ने ‘पन्ना धाय’ शीर्षक से किया है। रंगकर्म के विभिन्न पक्षों में स्वर्गीय नेमिचन्द्र जैन की विलक्षण क्षमताओं से हिन्दी संसार सुपरिचित है। ‘पन्ना धाय’ नाटक उनकी अनुवाद कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। नेमिचन्द्र जैन ने मूल बांग्ला नाटक को हिन्दी की प्रकृति में प्रस्तुत करते हुए उसकी मौलिक व्यंजना को सुरक्षित रखा है। कई अर्थों में संवर्धित किया है। कीर्तिशेष साहित्यसर्जक नेमिचन्द्र जैन की धवल स्मृति में ‘पन्ना धाय’नाटक इस विश्वास के साथ प्रस्तुत है कि पाठक इस कृति में मानवीय मूल्यों का साक्षात्कार कर सकेंगे।

Price     Rs 150/-

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भारतीय संस्कृति में पन्ना धाय का नाम मातृत्व, वात्सल्य, करुणा,साहस एवं बलिदान का शाश्वत प्रतीक बन गया है। मेवाड़ राजसिंहासन के उत्तराधिकारी बालक उदयसिंह को बनवीर से बचाने के लिए पन्ना धाय जो मार्ग निकालती है, वह अद्वितीय है। अपने बेटे को उदय के स्थान पर सुलाकर पन्ना उदय को राजसेवक बारी के द्वारा सुरक्षित स्थान तक पहुँचा देती है। ...अन्तत: पन्ना धाय की सूझबूझ और हिम्मत से उदय सिंह राजसिंहासन पर आरूढ़ होता है। कथानक प्रख्यात है और इसे आधार बनाकर अनेक रचनाएँ लिखी गयी हैं। शचिन सेनगुप्ता ने बांग्ला में ‘पन्ना दाई’ नाम से नाटक लिखा। इसी नाटक का अनुवाद नेमिचन्द्र जैन ने ‘पन्ना धाय’ शीर्षक से किया है। रंगकर्म के विभिन्न पक्षों में स्वर्गीय नेमिचन्द्र जैन की विलक्षण क्षमताओं से हिन्दी संसार सुपरिचित है। ‘पन्ना धाय’ नाटक उनकी अनुवाद कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। नेमिचन्द्र जैन ने मूल बांग्ला नाटक को हिन्दी की प्रकृति में प्रस्तुत करते हुए उसकी मौलिक व्यंजना को सुरक्षित रखा है। कई अर्थों में संवर्धित किया है। कीर्तिशेष साहित्यसर्जक नेमिचन्द्र जैन की धवल स्मृति में ‘पन्ना धाय’नाटक इस विश्वास के साथ प्रस्तुत है कि पाठक इस कृति में मानवीय मूल्यों का साक्षात्कार कर सकेंगे।
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