Vipatra

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Vipatra

Number of Pages : 80
Published In : 2008
Available In : HardBound
ISBN : 978-81-263-1650-2
Author: Gajanan Madhav Muktibodh

Overview

एक लघु उपन्यास, या एक लम्बी कहानी, या डायरी का एक अंश या लम्बा रम्य गद्य या चौंकानेवाला एक विशेष प्रयोग—कुछ भी संज्ञा इस पुस्तक को दी जा सकती है, पर इन सबसे विशेष है यह कथा-कृति, जिसका प्रत्येक अंश अपने आप में परिपूर्ण और परिपूर्ण और इतना जीवंत है कि पढऩा आरम्भ करें तो पूरी पढऩे का मन हो, और कहीं भी छोडें़ तो लगे कि एक पूर्ण रचनापढऩे का सुख मिला। जैसे मुक्तिबोध की लम्बी कविता अपने आपमें विशिष्ट, एक नया प्रयोग; जैसे मुक्तिबोध की डायरी साहित्य को एक अनुपमेय देन; जैसे मुक्तिबोध की शीर्षकरहित कहानियाँ कि कहीं भी पूर्ण हो जाएँ या जिनका ओर-छोर भी न मिले, वैसे ही है यह ‘विपात्र’—मुक्तिबोध की एक अद््भुत सृष्टि

Price     Rs 80/-

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एक लघु उपन्यास, या एक लम्बी कहानी, या डायरी का एक अंश या लम्बा रम्य गद्य या चौंकानेवाला एक विशेष प्रयोग—कुछ भी संज्ञा इस पुस्तक को दी जा सकती है, पर इन सबसे विशेष है यह कथा-कृति, जिसका प्रत्येक अंश अपने आप में परिपूर्ण और परिपूर्ण और इतना जीवंत है कि पढऩा आरम्भ करें तो पूरी पढऩे का मन हो, और कहीं भी छोडें़ तो लगे कि एक पूर्ण रचनापढऩे का सुख मिला। जैसे मुक्तिबोध की लम्बी कविता अपने आपमें विशिष्ट, एक नया प्रयोग; जैसे मुक्तिबोध की डायरी साहित्य को एक अनुपमेय देन; जैसे मुक्तिबोध की शीर्षकरहित कहानियाँ कि कहीं भी पूर्ण हो जाएँ या जिनका ओर-छोर भी न मिले, वैसे ही है यह ‘विपात्र’—मुक्तिबोध की एक अद््भुत सृष्टि
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