Kanvaas Par Prem

view cart
Availability : Stock
  • 0 customer review

Kanvaas Par Prem

Number of Pages : 160
Published In : 2016
Available In : Hardbound
ISBN : 978-93-263-5277-2
Author: Vimlesh Tripathi

Overview

विमलेश त्रिपाठी ने कविता और कहानी के क्षेत्र में तो अपने रचनात्मक कदम पहले ही रख दिए थे और अन्य पुरस्कारों के साथ-साथ भारतीय ज्ञानपीठ का 'नवलेखन पुरस्कार’ भी अपनी झोली में डाल लिया था। उनके कविता-संग्रह 'हम बचे रहेंगे’, 'एक देश और मरे हुए लोग’; कहानी-संग्रह 'अधूरे अन्त का शुरुआत’ इस बात का सुबूत है कि विमलेश में साहित्यिक परिपक्वता कूट-कूट कर भरी है। विमलेश एक मंजे हुए लेखक की तरह अपने समय को लिखता है। उसकी कलम में समाज का दर्द है और वह परम्पराओं को तोडऩे का साहस भी रखता है। परम्पराओं को तोडऩे के लिए परम्पराओं का ज्ञान होना आवश्यक है। विमलेश के लेखन की यही विशेषता उसे अलग खड़ा करती है। उसके लेखन से स्पष्ट हो जाता है कि वह किसी आलोचक विशेष को प्रसन्न करने के लिए नहीं लिख रहा, बल्कि जो कुछ उसके दिल को छूता है, परेशान करता है उसी विषय पर उसकी कलम चलती है। हमें कॉलेज और विश्वविद्यालय में बार-बार सिखाया गया था कि लेखक को कहानी और पाठक के बीच में स्वयं नहीं आना चाहिए... मगर परम्पराएँ तो टूटने के लिए ही बनती हैं ना। विमलेश का 'कैनवास पर प्रेम’ उपन्यास एक ऐसी कथा का वितान रचता है जहाँ प्रेम और खो गये प्रेम के भीतर की एक विशेष मन:स्थिति निॢमत हुई है। अपने उत्कृष्ट कथा शिल्प के सहारे विमलेश ने धुन्ध में खो गये उसी प्रेम को कथा के नायक सत्यदेव की मार्फत रचा है।

Price     Rs 200/-

Rates Are Subjected To Change Without Prior Information.

विमलेश त्रिपाठी ने कविता और कहानी के क्षेत्र में तो अपने रचनात्मक कदम पहले ही रख दिए थे और अन्य पुरस्कारों के साथ-साथ भारतीय ज्ञानपीठ का 'नवलेखन पुरस्कार’ भी अपनी झोली में डाल लिया था। उनके कविता-संग्रह 'हम बचे रहेंगे’, 'एक देश और मरे हुए लोग’; कहानी-संग्रह 'अधूरे अन्त का शुरुआत’ इस बात का सुबूत है कि विमलेश में साहित्यिक परिपक्वता कूट-कूट कर भरी है। विमलेश एक मंजे हुए लेखक की तरह अपने समय को लिखता है। उसकी कलम में समाज का दर्द है और वह परम्पराओं को तोडऩे का साहस भी रखता है। परम्पराओं को तोडऩे के लिए परम्पराओं का ज्ञान होना आवश्यक है। विमलेश के लेखन की यही विशेषता उसे अलग खड़ा करती है। उसके लेखन से स्पष्ट हो जाता है कि वह किसी आलोचक विशेष को प्रसन्न करने के लिए नहीं लिख रहा, बल्कि जो कुछ उसके दिल को छूता है, परेशान करता है उसी विषय पर उसकी कलम चलती है। हमें कॉलेज और विश्वविद्यालय में बार-बार सिखाया गया था कि लेखक को कहानी और पाठक के बीच में स्वयं नहीं आना चाहिए... मगर परम्पराएँ तो टूटने के लिए ही बनती हैं ना। विमलेश का 'कैनवास पर प्रेम’ उपन्यास एक ऐसी कथा का वितान रचता है जहाँ प्रेम और खो गये प्रेम के भीतर की एक विशेष मन:स्थिति निॢमत हुई है। अपने उत्कृष्ट कथा शिल्प के सहारे विमलेश ने धुन्ध में खो गये उसी प्रेम को कथा के नायक सत्यदेव की मार्फत रचा है।
Add a Review
Your Rating