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Number of Pages : 336
Published In : 2013
Available In : Hardbound
ISBN : 978-93-263-5154-6
Author: Paritosh Chakravarti

Overview

स्मृति के ताने-बाने के सहारे रचा गया यह उपन्यास एक ओर तो अमर की आत्म-गाथा है तो दूसरी ओर उसके माध्यम से ङ्क्षप्रट लाइन में लगातार गहराते अन्धकार का लेखा-जोखा भी। अपने सतत आत्म-संघर्ष के बाद अमर इस नतीजे पर आता है कि प्रिंट लाइन के भीतर के लोग प्रिंट लाइन का संयम तोड़कर बाहर आ गये हैं। और यह भी कि उसके बाहर ढेर सारे अपनों के बीच अब पहचानना मुश्किल हो गया है कि कौन मीडिया से है और कौन हीं। आत्म-साक्षय पर रचा गया यह उपन्यास, आत्मग्रस्त उपन्यास नहीं है : इसमें आत्म और अन्य के बीच लगातार आवाजाही है। ज़ाहिर है इसीलिए अमर की बाह्य और अन्त:कथा का संसार एकरैखिक होकर भी सपाट नहीं है। उसमें द्वन्द्व है, दुविधा है,संशय है। वहाँ सफेद सिर्फ सफेद और काला सिर्फ काला नहीं है।

Price     Rs 340/-

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स्मृति के ताने-बाने के सहारे रचा गया यह उपन्यास एक ओर तो अमर की आत्म-गाथा है तो दूसरी ओर उसके माध्यम से ङ्क्षप्रट लाइन में लगातार गहराते अन्धकार का लेखा-जोखा भी। अपने सतत आत्म-संघर्ष के बाद अमर इस नतीजे पर आता है कि प्रिंट लाइन के भीतर के लोग प्रिंट लाइन का संयम तोड़कर बाहर आ गये हैं। और यह भी कि उसके बाहर ढेर सारे अपनों के बीच अब पहचानना मुश्किल हो गया है कि कौन मीडिया से है और कौन हीं। आत्म-साक्षय पर रचा गया यह उपन्यास, आत्मग्रस्त उपन्यास नहीं है : इसमें आत्म और अन्य के बीच लगातार आवाजाही है। ज़ाहिर है इसीलिए अमर की बाह्य और अन्त:कथा का संसार एकरैखिक होकर भी सपाट नहीं है। उसमें द्वन्द्व है, दुविधा है,संशय है। वहाँ सफेद सिर्फ सफेद और काला सिर्फ काला नहीं है।
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