Fir Wahi Sawaal
view cart- 0 customer review
Fir Wahi Sawaal
Number of Pages : 206
Published In : 2012
Available In : Hardbound
ISBN : 978-93-263-5012-9
Author: Dinesh Karnatak
Overview
युवा लेखक दिनेश कर्नाटक का यह पहला उपन्यास है। वस्तुत: यह अपनी ज़मीन से बिछुडऩे को अभिशप्त एक नौजवान की कथा है। अपनी और अपनों की जि़न्दगी को बेहतर बनाने की जद्ïदोजहद में उलझे नौजवान के जगह-जगह जाने, जीवन को देखने,उससे जूझने की कथा है। जब वह गाँव में होता है तो उसे शहर में सम्भावनाएँ नज़र आती हैं, और जब वह शहर में होता है तो उसे गाँव पुकारने लगता है। पेड़-पौधों की तरह मनुष्य की भी जड़ें होती हैं। पेड़-पौधों की तरह आदमी भी जिस हवा, पानी मिट्ïटी, बोली-बानी, गीतों, रीति-रिवाजों, लोगों के बीच जनमा होता है, उनसे दूर होकर कुम्हलाने लगता है। पहाड़ सदा से लोगों को आकर्षित करता रहा है। उसके पास ऊँचाई है, शान्ति है, सपने हैं, सुन्दरता है; पर इन सबसे पेट नहीं भरता। यहाँ न खेती लायक ज़मीन है, न व्यापार और न ही नौकरी। फलत: युवाओं को निकटवर्ती महानगरों में रोज़गार की गुंजाइशें तलाशनी पड़ती हैं। इस जद्ïदोजहद में पहाड़ पीछे छूट जाता है। गाँव-पगडंडियाँ और गाड़-गधेरे सूने होते चले जाते हैं। प्रवासियों के जेहन में उनका पहाड़ किसी पुराने सपने की तरह, सोते-जागते, स्मृतियों में मँडराता रहता है। दिनेश कर्नाटक ने पहाड़ की तलछटी में बसी तमाम त्रासदियों-विरूपताओं को इस उपन्यास में अनुपम कथा-कौशल के साथ उकेरा है। कुमाऊँनी भाषा का ज़ायका यहाँ मौजूद है। स्वागतयोग्य उपन्यास।
Price Rs 200/-
Rates Are Subjected To Change Without Prior Information.
Add a Review
Your Rating
You May also like this
Oh, These Rehnumas!
The focal leitmotif of the novel Oh, These Rehnumas! is to bring out the representative voices o
Aadhunik Hindi Gadya Sahitya Ka Vikas Aur Vishleshan
प्रख्यात आलोचक विजय मोहन ङ्क्षसह की
Kaatna Shami Ka Vriksha Padma-Pankhuri Ki Dhar Se
काटना शमी का वृक्ष पद्मपखुरी की धार स