Shaalbhanjika
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Shaalbhanjika
Number of Pages : 96
Published In : 2012
Available In : Hardbound
ISBN : 978-81-263-4044-6
Author: Manisha Kulshreshtha
Overview
जैन और बौद्धकालीन स्थापत्य व मूर्तिकला में शालभंजिका’मन्दिर के तोरण द्वारों पर द्वारपालिका की तरह उकेरी जाती रही है। शालवृक्ष की फूलों भरी डाली पकड़े,उद्दाम ऐन्द्रिकता लिये यह स्त्री की प्रस्तर-प्रतिमा दरअसल अपने भीतर के अनछुए कोष्ठ-प्रकोष्ठों की भी स्वयं रक्षिका प्रतीत होती है। यह पूर्णत: सम्भव है कि उस मूर्तिकार (जिसने पहले पहल शालभंजिका को गढ़ा होगा) ने भी वही बेचैनी महसूस की हो, अतीत में विलुप्त किसी स्त्री की स्मृति में, जो बेचैनी इस उपन्यास का नायक, फिल्मकार चेतन महसूस करता रहा है और अपनी कला के माध्यम से अन्तस् में बसी पद्मा की छवियों को वह फिल्म में ढाल देना चाहता है। कलाकार पर बीतते और कला के माध्यम से रीतते इसी नॉस्टेल्जिया की कहानी है शालभंजिका। हर मनुष्य बाध्य है कि वह जीवन के इस वृहत नाटक में अस्थायी तौर पर बाहर-भीतर से स्वयं को रूपान्तरित कर ले, हालाँकि इस रूपान्तरण के दौरान उसका अपने अस्तित्व की भीतरी वलयों से साक्षात्कार एक चमत्कार की तरह घटता है। यही नियति है और यही निर्वाण है इस उपन्यासिका के तीनों मुख्य पात्रों— चेतन, पद्मा और ग्रेशल का। अपने वैविध्यपूर्ण लेखन और अतिसमृद्ध भाषा के लिए जानी जाने वाली लेखिका मनीषा कुलश्रेष्ठ की यह कृति ‘शालभंजिका’ अलग तरह के शिल्प और कथ्य को वहन करती है। अत्यन्त चाक्षुष और ऐन्द्रिक। एक फिल्मकार नायक को लेकर लिखी गयी इस उपन्यासिका में एक खास तरह का आस्वाद है, जिसके तर्कातीत और आवेगमय होने में ही इसकी रचनात्मक निष्पत्ति है।
Price Rs 120/-
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