Desh Nikala

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Desh Nikala

Number of Pages : 124
Published In : 2011
Available In : Hardbound
ISBN : 978-81-263-1764-6
Author: Dhirendra Asthana

Overview

धीरेन्द्र अस्थाना का उपन्यास ‘देश निकाला’ एक ऐसे जीवन-संघर्ष का आख्यान है जिसमें सफलता और सार्थकता के बीच मारक प्रतियोगिता चल रही है। मुम्बई की फ़िल्मी दुनिया का यथार्थ शायद ही किसी अन्य रचना में ऐसी बहुव्यंजकता के साथ अभिव्यक्त हुआ होगा। गौतम सिन्हा और मल्लिका इस सपनीली दुनिया में साँस लेने वाले ऐसे व्यक्ति हैं जो अपने-अपने व्यक्तित्व को परिभाषित करना चाहते हैं। पुरुष वर्चस्व का व्यामोह गौतम को मल्लिका से विलग करता है। मल्लिका प्रेम, आत्मीयता और अन्तरंग के लिए भौतिक उपलब्धियों को धूल की तरह झटक देती है। गौतम के साथ व्यतीत समर्पित अतीत बेटी चीनू के रूप में मल्लिका के साथ है— ‘यह दो स्त्रियों का ऐसा अरण्य था जिसमें परिन्दा भी पर नहीं मार सकता था।’ अन्तिम निष्पत्ति में धीरेन्द्र अस्थाना ‘देश निकाला’ को स्त्री के अस्मिता-विमर्श का रूपक बना देते हैं। सिने जगत की अनेक वास्तविकताओं से यह विमर्श पुष्टï होता है, श्रेया की उपकथा ऐसी ही एक त्रासद वास्तविकता है। धीरेन्द्र अस्थाना सम्बन्धों की सूक्ष्म पड़ताल के लिए जाने जाते हैं। यह उपन्यास पढक़र लगता है जैसे वैभव, बाज़ार और लालसा ने रिश्तों को आत्मनिर्वासन के मोड़ पर ला खड़ा किया है। सफलता के उन्मत्त एकान्त में ठहरे गौतम के साथ से मल्लिका और चीनू अपदस्थ हैं। यह एक नयी तरह का विस्थापन है जिसे कथाकार ने अचूक भाषा और शिल्प में व्यक्त किया है। मुम्बई शहर भी इस रचना में एक चरित्र की तरह है। इस महानगर के चमकते सुख सब देखते हैं, इसके टिमटिमाते दुखों को धीरेन्द्र अस्थाना ने अपनी तरह से पहचाना है।

Price     Rs 120/-

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धीरेन्द्र अस्थाना का उपन्यास ‘देश निकाला’ एक ऐसे जीवन-संघर्ष का आख्यान है जिसमें सफलता और सार्थकता के बीच मारक प्रतियोगिता चल रही है। मुम्बई की फ़िल्मी दुनिया का यथार्थ शायद ही किसी अन्य रचना में ऐसी बहुव्यंजकता के साथ अभिव्यक्त हुआ होगा। गौतम सिन्हा और मल्लिका इस सपनीली दुनिया में साँस लेने वाले ऐसे व्यक्ति हैं जो अपने-अपने व्यक्तित्व को परिभाषित करना चाहते हैं। पुरुष वर्चस्व का व्यामोह गौतम को मल्लिका से विलग करता है। मल्लिका प्रेम, आत्मीयता और अन्तरंग के लिए भौतिक उपलब्धियों को धूल की तरह झटक देती है। गौतम के साथ व्यतीत समर्पित अतीत बेटी चीनू के रूप में मल्लिका के साथ है— ‘यह दो स्त्रियों का ऐसा अरण्य था जिसमें परिन्दा भी पर नहीं मार सकता था।’ अन्तिम निष्पत्ति में धीरेन्द्र अस्थाना ‘देश निकाला’ को स्त्री के अस्मिता-विमर्श का रूपक बना देते हैं। सिने जगत की अनेक वास्तविकताओं से यह विमर्श पुष्टï होता है, श्रेया की उपकथा ऐसी ही एक त्रासद वास्तविकता है। धीरेन्द्र अस्थाना सम्बन्धों की सूक्ष्म पड़ताल के लिए जाने जाते हैं। यह उपन्यास पढक़र लगता है जैसे वैभव, बाज़ार और लालसा ने रिश्तों को आत्मनिर्वासन के मोड़ पर ला खड़ा किया है। सफलता के उन्मत्त एकान्त में ठहरे गौतम के साथ से मल्लिका और चीनू अपदस्थ हैं। यह एक नयी तरह का विस्थापन है जिसे कथाकार ने अचूक भाषा और शिल्प में व्यक्त किया है। मुम्बई शहर भी इस रचना में एक चरित्र की तरह है। इस महानगर के चमकते सुख सब देखते हैं, इसके टिमटिमाते दुखों को धीरेन्द्र अस्थाना ने अपनी तरह से पहचाना है।
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