Aathwan Rang @ Pahad - Gaatha
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Aathwan Rang @ Pahad - Gaatha
Number of Pages : 184
Published In : 2014
Available In : Hardbound
ISBN : 978-93-263-5278-9
Author: Pradeep Jilwane
Overview
उपन्यास में लेखक ने सामाजिक प्रश्न को सजग दृष्टि से उठाया है। किसी भी धर्म के प्रति आग्रह और पक्षपात न दिखाकर मानव सम्बन्धों की कसौटी पर सभी की जड़ता और क्रूरता को लेखक ने गम्भीरता से परखा है। प्रदीप जिलवाने की भाषा अत्यन्त सजीव, संयत और साफ-सुधरी है, जिसके कारण उपन्यास का सृजनात्मक पक्ष उभरकर सामने आता है। प्रदीप जिलवाने ने अपने पात्रों के माध्यम से समाज के उन काले यथार्थ पर सार्थक रोशनी डालने की कोशिश की है, जो बहुधा मनुष्य जीवन के अधरंग हिस्से में जड़ता बनकर काई की तरह चिपका रहता है और वह कभी उजागर नहीं होता है। कभी उसके सामने धर्म आड़े आ जाता है तो कभी जाति तो कभी वर्गभेद। वैसे देखा जाए तो जिलवाने ने इस उपन्यास के माध्यम से आदिवासी समाज के विनष्ट होते जा रहे जीवन को रेखांकित करने की भरपूर कोशिश की है। फिर भी शिकंजे में फँसे और पीडि़त मामूली आदमी की व्यथा-कथा अधूरी ही रह जाती है। लेकिन उपन्यास में लेखक यह बताने में सफल रहता है कि संस्थागत धर्म के लिए इनसान अन्तत: अपनी शक्ति संरचना की मुहिम में एक औजार भर होता है। दरअसल, आठवाँ रंग@पहाड़ गाथा उपन्यास के बहाने मनुष्यता को अन्तिम और अनिवार्य धर्म रेखांकित करने की एक कोशिश है और वह भी बगैर किसी अन्य को खारिज करते हुए। विमलेश के इस नये उपन्यास का हिन्दी जगत में खुलकर स्वागत होगा और यह हमें एक नयी दिशा में सोचने को मजबूर करेगा।
Price Rs 240/-
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