Kagar Ki Aag

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Kagar Ki Aag

Number of Pages : 100
Published In : 2014
Available In : Hardbound
ISBN : 81-263-1226-2
Author: Himanshu Joshi

Overview

घास-फूस के टूटे कच्चे घर! आकाश की झीनी छत। धरती पर कच्ची मिट््टी की मैली चादर। दो जून रूखी-सूखी मिल पाना भी मुश्किल। मर-मर जीने वालों की वह व्यथा-कथा आज का युग-सत्य भी है, कहीं। बर्फीले पर्वतीन क्षेत्र की इस कथा में एक अंचल विशेष की धरती की धड़कन है, एक जीता-जागता अहसास भी। मोमती, पिरमा,  कुन्नू के माध्यम से संत्रस्त मानव-समाज के कई चित्र उजागर हुए हैं। इसलिए यह कुछ लोगों की कहानी, कहीं 'सबकी कहानी’बन गयी है—देश-काल की परिधि से परे।

Price     Rs 120/-

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घास-फूस के टूटे कच्चे घर! आकाश की झीनी छत। धरती पर कच्ची मिट््टी की मैली चादर। दो जून रूखी-सूखी मिल पाना भी मुश्किल। मर-मर जीने वालों की वह व्यथा-कथा आज का युग-सत्य भी है, कहीं। बर्फीले पर्वतीन क्षेत्र की इस कथा में एक अंचल विशेष की धरती की धड़कन है, एक जीता-जागता अहसास भी। मोमती, पिरमा,  कुन्नू के माध्यम से संत्रस्त मानव-समाज के कई चित्र उजागर हुए हैं। इसलिए यह कुछ लोगों की कहानी, कहीं 'सबकी कहानी’बन गयी है—देश-काल की परिधि से परे।
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