Sookhate Chinaar

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Sookhate Chinaar

Number of Pages : 136
Published In : 2012
Available In : Hardbound
ISBN : 978-93-263-5064-8
Author: Madhu Kankariya

Overview

वरिष्ठ लेखिका मधु कांकरिया ने अपने सृजन के लिए हमेशा अब तक अछूते रहे आये विषयों का चयन किया है। बावजूद गहन शोध के यह काबिलेतारीफ है कि उनके यहाँ कथा-प्रवाह पूर्णत: अबाधित है। ‘सूखते चिनार’एक ऐसे युवक की कथा है जो परिवार से बगावत करके फौज में सिर्फ इसलिए भर्ती हो जाता है कि उसने एक सुबह अखबार में ‘नेशन नीड्स यू’ का भावुक विज्ञापन पढ़ लिया था और उसने इस बात की कसम खा ली कि ‘सोल्जर आई ऐम बॉर्न, सोल्जर आई शैल डाई’। एक ऐसा मारवाड़ी युवक जिसके पुरखों के हाथों में सदा तराज़ू हुआ करता था, आज उसके हाथों में बन्दूक है। लाला के घर लेफ्टीनेंट। कलकत्ते के सुखद-गर्म बासे से कश्मीर के दु:खद-ठंडे बेस कैम्प तक। फौजी जीवन की तमाम त्रासदियों को ज़मीनी स्तर पर रू-ब-रू करता यह उपन्यास पाठकों को एक अलग ही दुनिया में ले जाता है। मेजर सन्दीप, कर्नल आप्टे, बाबा हरभजन सिंह जैसे किरदार उस कश्मकश को साक्षात् करते हैं जो राष्ट्र और फौजी के अन्तस्सम्बन्धों में गुम्फित है। एक $फौजी को घुट्टी में ही पिलाया जाता है कि स्व को समूह में विसॢजत करे—इस उपन्यास के पृष्ठ-दर-पृष्ठ पर स्व से समूह तक के विसर्जन की यात्रा फैली हुई है। नितान्त रोचक पृष्ठभूमि पर लिखा गया यह उपन्यास स्वागतयोग्य है।

Price     Rs 150/-

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वरिष्ठ लेखिका मधु कांकरिया ने अपने सृजन के लिए हमेशा अब तक अछूते रहे आये विषयों का चयन किया है। बावजूद गहन शोध के यह काबिलेतारीफ है कि उनके यहाँ कथा-प्रवाह पूर्णत: अबाधित है। ‘सूखते चिनार’एक ऐसे युवक की कथा है जो परिवार से बगावत करके फौज में सिर्फ इसलिए भर्ती हो जाता है कि उसने एक सुबह अखबार में ‘नेशन नीड्स यू’ का भावुक विज्ञापन पढ़ लिया था और उसने इस बात की कसम खा ली कि ‘सोल्जर आई ऐम बॉर्न, सोल्जर आई शैल डाई’। एक ऐसा मारवाड़ी युवक जिसके पुरखों के हाथों में सदा तराज़ू हुआ करता था, आज उसके हाथों में बन्दूक है। लाला के घर लेफ्टीनेंट। कलकत्ते के सुखद-गर्म बासे से कश्मीर के दु:खद-ठंडे बेस कैम्प तक। फौजी जीवन की तमाम त्रासदियों को ज़मीनी स्तर पर रू-ब-रू करता यह उपन्यास पाठकों को एक अलग ही दुनिया में ले जाता है। मेजर सन्दीप, कर्नल आप्टे, बाबा हरभजन सिंह जैसे किरदार उस कश्मकश को साक्षात् करते हैं जो राष्ट्र और फौजी के अन्तस्सम्बन्धों में गुम्फित है। एक $फौजी को घुट्टी में ही पिलाया जाता है कि स्व को समूह में विसॢजत करे—इस उपन्यास के पृष्ठ-दर-पृष्ठ पर स्व से समूह तक के विसर्जन की यात्रा फैली हुई है। नितान्त रोचक पृष्ठभूमि पर लिखा गया यह उपन्यास स्वागतयोग्य है।
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