Ghaas Ka Pul
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Ghaas Ka Pul
Number of Pages : 204
Published In : 2016
Available In : Hardbound
ISBN : 978-93-263-5289-5
Author: Ravindra Verma
Overview
इधर हमारे समाज में धर्म की परिघटना और ज़्यादा उलझती गयी है क्योंकि सत्ता की राजनीति से इसका सम्बन्ध और गहराया है। यह वही समय है जब नव-उदारवाद की जड़ें भी फैली हैं। इस फौरी राजनीति में साम्प्रदायिकता धर्म की खाल ओढ़ लेती है जिसमें 'दूसरा’ फालतू है। जिस धर्म का मूल अद्वैत हो, उसमें दूसरा संदिग्ध हो जाय, इससे बड़ी विडम्बना और क्या होगी! यह उपन्यास इस प्रक्रिया के व्यापक तन्तुओं को पकडऩे का प्रयास करता है। दूसरी तरफ धर्म का सकारात्मक पक्ष है। यह सामान्य जीवन के दुख को धीरज और उम्मीद देता है। फन्तासी ही सही, यह उस अँधेरे कोने को भरता है जो आदमी के भीतर सनातन है। इसका खतरा यही है कि यह सामाजिक जड़ता में तब्दील हो जाता है। कबीर के मुहावरे में कहें तो धर्म यदि 'निज ब्रह्म विचार तक सीमित रहे तो वह सकारात्मक है। जैसे ही यह संगठित धर्म में बदलता है, उसके सारे खतरे उजागर हो जाते हैं। यह उपन्यास धर्म की सामाजिक परिणतियों की शिना$ख्त का एक प्रयास है, जो धर्म के संगठित रूपों से पैदा होती हैं। इसमें एक ओर माला फेरती चौथे धाम की प्रतीक्षा करती अम्मा हैं, दूसरे छोर पर आतंकी के शक पर गायब हुआ असलम है जिसका शिज़रा वाजिद अली शाह से जुड़ता है—जिनके लिए 'काबा’ और 'बुतखाना’ में कोई फर्क नहीं था। इसका अंजाम एक गहरी मानवीय त्रासदी है जिसमें एक किसान का उजडऩा भी शामिल है।
Price Rs 280/-
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