Sahasraphana
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Sahasraphana
Number of Pages : 456
Published In : 2010
Available In : Paperback
ISBN : 978-81-263-2046-2
Author: Vishwanath Satyanarayan
Overview
सहस्रफण’कवि-सम्राट विश्वनाथ सत्यनारायण का बृहत् एवं सर्वमान्य उपन्यास है। 1934 में रचित इस उपन्यास में मुख्यतया भारतीय जन-जीवन के 'सिन्धकाल’का चित्रण है। प्राचीन संस्कृति के मूल्यों पर अँग्रेज सरकार का सहारा लेकर किए गये आघात, अन्ध-अनुकरण के फलस्वरूप भारतीय जीवन की होचुकी एवं हो रही दुर्गति, 'स्वधर्म’की वास्त’क महत्ता आदि बातों का अत्यन्त प्रभावशाली अनुशीलन इस उपन्यास में किया गया है। कहा जा सकता है कि इसमें इतिहास भी है, समाजशास्त्र भी है, राजनीति भी है और प्राचीन संस्कृति का निरूपण भी है। और सबसे बड़ी ‘शेषता है इसके कथानक की रसात्मकता। उपन्यास का हिन्दी रूपान्तर किया है—डॉ. पी.वी. नरसिंह राव ने।
Price Rs 220
सहस्रफण’कवि-सम्राट विश्वनाथ सत्यनारायण का बृहत् एवं सर्वमान्य उपन्यास है। 1934 में रचित इस उपन्यास में मुख्यतया भारतीय जन-जीवन के 'सिन्धकाल’का चित्रण है। प्राचीन संस्कृति के मूल्यों पर अँग्रेज सरकार का सहारा लेकर किए गये आघात, अन्ध-अनुकरण के फलस्वरूप भारतीय जीवन की होचुकी एवं हो रही दुर्गति, 'स्वधर्म’की वास्त’क महत्ता आदि बातों का अत्यन्त प्रभावशाली अनुशीलन इस उपन्यास में किया गया है। कहा जा सकता है कि इसमें इतिहास भी है, समाजशास्त्र भी है, राजनीति भी है और प्राचीन संस्कृति का निरूपण भी है। और सबसे बड़ी ‘शेषता है इसके कथानक की रसात्मकता। उपन्यास का हिन्दी रूपान्तर किया है—डॉ. पी.वी. नरसिंह राव ने।
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